मानस - मंदाकिनी | Manas - Mandakini

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Manas - Mandakini by शंभु प्रसाद बहुगुना - Shanbhu Prasad Bahuguna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ पजा पशु ने किया। दुहने में चतुर मेरु को ग्वाला बनाया, सव पत्तों से हिमालय ही गोवत्स बनने योग्य ठहरा चमकते रलों (र्ल-हीर्‌ मणि इत्यादि तथा विद्वान रिषि मुनि आदि) आर दीप्त ओषधियों (जड़ी बूटियों) ( आदि, अम्छत पयस्विनियों के दूध) को दुहते समय इस प्रकार गोवत्स' रूप (गंगा गोमुख से निकलती है ) में हिमालय आज भी उसी तरह खड़ा है। ३ अनंत रखों और ओषधियों को उत्पन्न करने वाले हिमालय में शोतता है किन्तु इसी से उस की खुन्दरता में कमों नहीं आ जाती। सगांक (कलंक) तो चन्द्रमा मे भी दै पर असंख्य खुन्दर किरणों में बह (दव जाता है) नगरय है । ४ हिम शिखरों (আন্ত राग गेरू मय) रागारुण विभा जो कि बादलों के लुमों (ऊन तथा रेशमी रुई के ग़ुच्छों जैसे टेर) से विभक्त জু किरणों के पड़ने से इन शछंग पर तथा मेघ पंक्तियों में उत्पन्न होती है, समय से पूर्व ही संध्या की शोभा को दिखाती जिस से कि श्रम में पड़ जाने से अप्सराएँ, विशज्लेम (हड़- बड़ी) में अपने प्रसाधन (इत्यादि) मं लग जातो हें, (रात्रि के संगीत-ृत्य इत्यादि मे जाने की तैयारियां करने लगती हें 1) ५ हिमालय कीं मेखला ८ कटि-तट, कमर, मध्य भागी सीमा ) पर संचरण करते घनो की छाया में ( अहूट खर तर असि धाराओं जैसी ) वृष्टि से उद्धिग्न हो जाने पर सिद्ध मंडली हम र्टगों पर ली धूप तापने जाती है। ६ हिमालय के किरात हाथी मार कर गये हुए शेर के खून-भरे पंजों के निशान, £ वरू पर्न रहने चर भी गज मुक्ताओं को देख-देख कर केशरी রা আন লাহী का पता (सहज ही मे बडी आसानी से) लगा लेते हैं। ५ हिमालय में विद्याधर खुन्दरियाँ, भोजपत्र पर गेरू (घातु) के रस (इंगुर सिन्दूर) से अपने प्रेमियों পা लिखतो हैं। भोज पत्र पर वे (लाल लाल गोल) अक्षर ऐसे खुन्दर




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