भारतीय आर्य भाषाओं का इतिहास | Bhartiya Arya Bhashao Ka Ithihas

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Bhartiya Arya Bhashao Ka Ithihas by जगदीश प्रसाद कौशिक - Jagdish Prasad Kaushik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( & ) सारस्वत बौर सिद्धात चद्धिका जसे ध्याकरण ग्रथों का अध्ययन किया। आधुनिक प्रणाली पर भाषाओं के अध्ययन की ओर अग्रसर करने का श्रेय हिंदी के कतिपय ग्राथों को है जिनमे डॉ उदयनारायण तिवारी कृत “हिन्दी भाषा का उतगम और विकास, डा बाबूराम सकसेना छृत शसामाय भाषा विज्ञान', डा धीरेद्र वर्मा कृत 'हिंदी भाषा का इतिहास” और डॉ सुनीति कुमार चार्टर्ज्या कृत्त भारतीय आयमभापाएँ और हिंदो” आदि प्रमुख हैं। उक्त ग्रन्‍थों का मेरे भाषा जीवन में जो योगदान है उससे मैं शायद ही उऋण हो सक्‌ । भाषामो कै अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करते रहने का श्रेय डॉ सरनाम सिह शर्मा 'अदुण' को है । किसी भी विषय पर किसी भी समय विचार विमश करने वे लिण उनके हार मेरे लिए सदव खुले रहते हैं। उसी का यह परिणाम है जिसके लिए मैं कृतज्ञ हूँ । भेरे लेखक जीवन का शुभारम्भ उन भाषा वैचानिक लेखो से होता है जो समय समय पर हि दी की प्रमुख शोप पत्रिकाओ--नागरी भ्रचारिणी पत्रिका शोध पत्निका, विश्वम्मरा, सप्त सिघु राजस्थान पत्रिका जनभारती ব্ঘবন্্ী জাবি ম प्रकाशित होते रहे हैं ) मेरे लेखा को पढकर मेरे विद्वान्‌ मित्रो ने मुझे इस विषय पर कोई पुस्तक लिखने का परामश दिया जिससे मेरे विचार अधिक से अधिक लोगो तक पहुँच सर्वे । इसी बीच बी ए के छात्रा को भारतीय आय भाषाओ का इतिहास पढाते समय मुझे यह अनुभव भी हुआ कि हिंदी जगत में एक ऐसी पुस्तक की भावश्यवता है जो मौलिक होते हुए भी ऐसी शली में लिखी हुई हो कि एमए ओर बीए के छात्रों के लिए समान रूप से उपादेय हो और व अपनी आवश्यक्तानुमार सामग्री अत्यात सरलता से प्राप्त कर सकें। अत पुस्तक लिखने का निश्चय कर उपर्युक्त प्रकार की रूपरेखा तेयार कर ली गयी 1 उक्त रूप रेखा को साकार रूप प्रदान करने मे भेरे अभिन्न मित्र डा प्रभाकर शर्मा शास्त्री सस्कृत विभाग का जो अमूल्य सहयोग मिला वह मेरे हृदय वी एक बहुमूल्य निधि बन गया है। समय समय पर मिले आपके सुझाव तो महत्त्वपूण थे ही साथ ही आपके सशक्त “प्रूफ रीडिग ने पुस्तक को अधिक निर्टोप बना दिया है । मेरे जीवन निर्माण मे भेरी स्वर्गीया घमपत्नी श्रीमती शातता कौशिक का बहुत बड़ा हाथ रहा। वह मेरी पत्नी ही नहीं एक माग-दर्शिका भी थीं । क्शोरावस्था की वह मेरी जीवन सगिनी सदेव कहा करती थी कि अध्ययन काल में सुख की आकाक्षा करना असफ्लता को आर्मात्रत करना है और अध्ययन तो अपने आप में एक सुख है । मैं नही समझती कि इससे आगे भी




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