पट्टमहादेवी शान्तला भाग - 3 | Patta Mahadevi Shantala Part - 3

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Patta Mahadevi Shantala Part - 3  by नागराजराव - Nagrajravपी वेंकटाचल शर्मा - P. Venkatachal Sharma

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पी वेंकटाचल शर्मा - P. Venkatachal Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्त्रियों के लिए वह उचित नहीं लग सकता है।” “डीक न लगता हो तो विवाह कैसे हो सकता है ? जबरदस्ती से तो विवाह नहीं हो सकता है न ?” “राजनैतिक सहूलियतों की दृष्टि से समाज ते इसे मान लिया है। क्या करें ? चालुक्य राजा की कितनी पत्नियाँ हैं क्या तुम्हें मालूम नहीं ? उनमें तुम्हारी प्यारी चन्दलदेवी का कौन-सा स्थान है ? उन्होंने अपनी इच्छा से चालुक्य चक्रवर्ती विक्रमादित्य को साला पहनायी थी न ?” “इस बात को जानते हुए कि अपने प्रेम का एक काँटा पहले से मोजूद है ये स्न्रियाँ दूसरी स्त्री के पति से विवाह करती ही क्यों हैं?” “बह स्त्री के स्वभाव की दुर्बलता का प्रतीक है। उसे “अपने व्यक्तित्व के विकास से भी अधिक अपने को अमुक की पत्नी कहलाने में विशेष आसक्ति और तृप्ति! कहा जा सकता है ।” “तो प्रभु को आपने वरणः” “मैं उनकी धर्म-पत्नी हूँ गौर पहली हूँ । प्रेम से वरण किया। मुझमें अन्य किसी भी तरह का लोभ नहीं रहा । मेरी बात छोड़ो । बताओ, तुमने छोटे अप्पा' जी से क्‍यों विवाह किया । तुम को मालूम था कि अप्पाजी सिंहासन पर बैठेगा। छोटे अप्पाजी का सिंहासन पर बैठना असंभव था, तो भी तुमने वरण किया ॥' क्‍यों?” “सब स्त्रियाँ मेरी-आपकी तरह नहीं होंगी, यही न ?” “इसके लिए उत्तर की आवश्यकता है ? दण्डनायिकाजी की बच्चियों का हाल” तुम्हें मालूम नहीं ?” “उनकी बात अब नहीं होनी चाहिए । आपने बहुत बातचीत की, भर आराम करें। कल फिर विचार करेंगे ।” “कल क्‍यों अम्माजी, मुझे कोई थकावट नहीं । तुम लोगों के न आने के कारण चितित थी और थकी भी थी यह सच है । दिल खोलकर बात करने के लिए मेरे साथ हेग्यड्तीजी को छोड़ और कौन है ? अब तुम सब लोग आ गये । मुझे नया उत्साह मिला है। कहने के लिए बहुत कुछ है। थक जाऊँ तो मैं आप ही चुप हो जाऊंगी । मुझमें बात करते रहने की ऐसी कोई आदत नहीं यह तुम जानती ही हो । लेकिन अब मुझे रोको मत, मुझे जो कहना है उसे कह लेने दो ।” “आप कुछ भी कहिए, मैं मना नहीं करती ।-महारानी पद्मलदेवी से सम्बन्धित कोई भी बात न कहें ! वह एक भुला दिया गया कड़ वा प्रसंग है। ज्यादा ही दुःख होगा, इसलिए मेरी विनती को मानें । “मैं भी उनकी वात उठाना नहीं चाहती । मेरी यही आकांक्षा है कि ऐसी घटवा राजमहल में फिर न होने पावे ।” । पटूमहादेवो शान्तला : भाग तीन / 11:




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