मध्ययुगीन हिंदी महाकाव्यों में नायक | Madhy Yugeen Hindi Mahakavyo Mein Nayk

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Madhy Yugeen Hindi Mahakavyo Mein Nayk by कृष्णदत्त पालीवाल - Krishnadatt Paliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ বা रामर्वाद्रका $ महाका-पटय सया नायक्त्व परं पूव निर्धारित प्रतिमाना से विचार किया गया है। रन्त मे वाल्मीकि रामाय, मानस तथा रामचद्धिका कै समक तुकना करते हूए निष्कप दिया गया है! चतुथ अध्याय म इृष्ण के नायवत्व बे विचाराथ इृष्ण का एतिहासिक उल्लेख, कृष्णा तथा क्राइस्ट का विवाद, बंदों, उपनिप्दा पुराणा, श्रवतारवादी तत्वा, परम्पराआ का निरपण किया गया है| कृष्णा के ऐतिहासिक तथा साम्प्रदा- पिक क्रम के साथ-साथ मध्ययुगीन इष्ण भवित शाखा कै प्रमुख कविया में श्रभि- व्यक्त विविध उपास्य रूपा, प्रचवितारा तया लीलात्मवा रूपो का उद्घाटन है। वेदो ष हष्णा, वासुदेव इृष्ण, गोपाल इण्णा, महाभारत हृष्ण, राघा-ष्ण के विभिन रूप के क्रमिक अध्ययन के पश्चात आचायों तथा अय कजाओा मे प्राप्त कृष्ण क॑ स्वरूप पर विचार क्या गया है। मध्ययुगीन इंप्ण कारयों की प्रवध- परम्परा का चचा करत हुए हमने ब्रज विलास तथा इृष्णचाद्रिका वो ही महावाव्य माना है! पूव निर्धारित कसौटी के आधार पर इन हृतियों वे! महाबायत्व तथा चायबत्व का विवचन है, अत म निष्कष प्रस्तुत किए गए हैं । इस प्रकार इस प्रवाघ म मध्यवुगीन महाकाया के' नायको का साहित्यिक तथा एतिद्वासिव' दष्टि से ग्राकवन, विश्लेषणा, विवेचन तथा तिरूपण हुमा है। यह शोध प्रवधश्रादरणीय गुस्वर डा० विजयेद्र स्नातक तया डा० दया- शक्र जी मिश्च तै पाण्डित्यपूरा एव स्नेहस्िक्न निर्देशन म लिखा गया है। इस गुझ्वरों की प्रे रखा, प्रात्साहन से ही यह काय पूरा हो सका है। तदथ मै उनके चरणों में श्रद्धा स नत हूँ । मैं पूव हिटी विभागाध्यक्ष डा० नगेद्ध जा वा भी विशेष इतज्ञ हैँ, जि होंते मुझे इस महत्वपूण्या विषय पर शोध-काम करने की झनुमत्ति प्रदान करत हुए उत्साह बद्धन किया है साथ ही समय समय पर अपने सुभावा से मेरा पथ प्रशस्त क्या है। इस प्रयत्न मे स्त्रामी योगानाद जो मेरे सहायक रहे हैं उनकी महान कृपा से ही इस पथ पर चल सका हूँ । आदरणीय डा० दशरथ शर्मा, ढा० भामप्रवाश डा० हरिवश कोठड तथा १० दृष्णशक्र जी शुक्ल का मैं विशेष ऋणी हूँ, जिरोने श्रतक प्रकार, से मेरी सहायता छो. हे , आऋढ হু আর আছি হি तथा मित्रो का प्राभारी हूँ, जिनको कृतियां तया सम्मतियों से मैं लाभागवित हुआ है । दिल्‍ली विश्वविद्यालय कृष्णदत्त पालीवाल ह जून, १६७०




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