समयसार | Samay Sar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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जयचंद्रजी - Jaychandraji
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पंडित मनोहरलाल शास्त्री - Pandit Manoharlal Shastri
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डे
आहमेद एटमह अहमेदस्सेव होमि मम एंड । |
अण्णं जं प्रदग्धं मचित्ताचित्तमिस्सं वा ॥२०॥)
आसि मम पव्वमेदं अहमेदं चावि पुव्वकालक्षि ।
होहिदि पुणोवि मज्क॑ अहमेद॑ चावि होस्सामि ॥११॥
एयत्त अपंभूद आदवियप्पं करेदि संमूढो ।
भूदत्थं जाणंतो खकरेंदि दू ते असंमृदों ॥२२॥
जो पुरुष अपनस अन्य जा परद्रब्य सचित्त स्त्रीपुन्नादिक,
अचित्त धन प्रान्यादिक, मिश्र प्राम नगयादिक, इनको सा मम
किम यहद, यद्रत्य मुभस्वरूप है, में इन का हूं, ये मेर हैं, ये
मर पहले थे. इनका में भी पहले था। तथा ये मेरे आगामी होंगे
मे भी इन का आगामी होऊंगा, एसा कूठा आत्मविकल्प करता
ह वह मृद है, मोही है, अज्ञानी है। और जो पुरुष परमाथ वस्तु
स्वरूपकों जानता हआ पमा भृटा विकल्प नहीं करता है वह
मढ नहीं हे ज्ञानी हे ।
अगणाणमोहिदमदों मज्कमिणं भणदि पुरगल दव्व |
बद्धमबद्धां च तहा जीवो बहुभावसंजुत्तो ॥२३॥
सब्बण्हुणाणदिह्वो जीवो उयओगलक्खणो शिरचं ।
किह सो पुस्गलद॒ब्बी -भूदो ज॑ भशसि मज्कमिणं ॥२४॥
जदि सो पृस्गलद॒व्बी-भूदों जीवन्तमागद इदर।
तो मत्तो वत्तः जे मज्ममिणं पुंग्गल दनं ॥२५॥
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