रामायणगत वैदिक सामग्री एक समालोचनात्मक अध्ययन | Ramayangat Vaidik Samgrii ek Samalochnatmak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
230
श्रेणी :
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No Information available about सतीश कुमार शर्मा -Sateesh Kumar Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रामायण तथा বহ | 15
यत्र-तत्र 'रामायण' म दो प्रकार दी शैली भ्राप्त होती है, पौराणिक तथा
काव्यशास्त्रीय । पौराणिक शली मे कायशास्त्रीय तत्त्वा वा सवा अभाव है।
'रामायण' मवुछस्थला पर उत्हृष्ट काव्य के दशन हात हैं यथा सोताहरण वर्षो-
बणन शरद वणन तथा लका वणन आदि। ये इस काव्य ने उत्तमाश वह जा
सकत हैं। इह केवल गायका वे गोत नही वहा जा सकता । ग्यत्मीकि ने बहुत से
स्थला पर प्रद्ृति चित्रण क्या है । जहा तब उत्तरदाण्ड' का प्रश्न है, वह तो
प्रक्षिप्त ही है, कपोकि युद्ध काण्ड' व अत म क्या के श्रवण का महात्म्य वानरा
तथा राक्षसों का अपन হঘাল কা चल जाना एवं काव्यशास्त्रीय नियमा व अनुसार
नायकं को फते प्राप्ति वणित हो चुकी है \ उत्तरकाण्ड म सवया पौराणिव शेली
मे आख्यान ही जोड़े गए हैं। यहा राम की चारित्रिक हीनता के प्रसग भी भिलत
है, जसे सीता का निर्वासन तथा ब्राह्मण शवृक का वध
सपूण वालकाण्ड की प्रशिप्त मानना उचित नही है। यहा वेजल व उपाष्यान
ही जिनका मूल क्या से सदघ नहीं दै प्रप्त माने जा एकत र, पया षप्यण्डम,
विश्वामित्र, गगावतरण एवं त्रिशकु वी क्या आदि । यदि सपूण बालकाण्ड का
प्रक्षिप्त पान लें ता आदि कवि वाल्मीकि के मुख বলিল হীন का भी प्रक्षिप्त
मातना होगा जिस 'आनदबंधन रसवाल की स्थापना के लिए प्रमाण मानत हैं ।”
अयोध्याकाण्ड म राम बे राज्याभिषेक ब लिए जो पय निप्चित पिपा
गया था उस समय पुण्य-नक्षत्र, ककलग्त तथा क्क्राशिस्थ बहस्पति और चद्रमा
ज-मकालिक दिवस व ही समान थे ।2 जमकालिक नक्षत्र तया ग्रह् स्थिति वाल
काण्ड' म है।! यदि बालकाण्ड का प्रक्षिप्त माना जाए तो 'अयोध्याकाण्ड का
वह भाग भी प्रक्षिप्त मानना पडेगा जहा इस प्रकार का विवरण प्राप्त होता है।
अरण्यकाण्ड मे मारीच रावण को राम क प्रति सीताहरण रूपी अपराध
करने से रोकन का परामश देत हुए अपन गत अनुभव चतलात हैं।* जब मारीच
ने अपने साथिया सहित 'दण्डकारण्य म श्री राम पर आक्रमण क्या तो राम न
उनके साथिया का वध कर दिया था। उनके भय स त्स्त होकर मारीच ने सथास
ल लिया दण्डकारण्य में विश्वाभित्रक यनम राम का मारीच तथा उसके
1 द्रप्य्व्य प्रस्तुत शोध प्रदघ, पप्ठ 8
2 घ्वयालांक 1 5
3 रा० 2 13 3 उदित विमल सूर्े पुष्ये चाभ्यागतः्हनि 1
लग्न क्कटकं प्राप्तं जम रामस्य च स्थित ॥
2 23 8 अच वाहस्पत श्रीमायुक्त पुप्येण राघव ।
4 तदेव ) 28815 (মণ নি)
5 तदेव 3 34, 3 35 10
6 तरेव 3 36 37
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