अष्टाध्यायी के आदेश सूत्र - एक समीक्षात्मक अध्ययन | Ashtadhyayee Ke Aadesh Sutra - Ek Samikshatmak Adhyayan

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Ashtadhyayee Ke Aadesh Sutra - Ek Samikshatmak Adhyayan by श्याम लता पाण्डेय - Shyam Lata Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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11 वृत्तिकार एवं दौीकाकार ग्य मश एवं विकार लैसा तव नहीं मानते और स्रग्वी मातैशों को चै वै एकाल्‌. हौ या मनेकाल জারা শ্রী করন हैं | पाणिनीय ज्लप्रवाय कै प्रक्रियानप्लारी व्याकरण पन्य *लेयाकरशण জিহশাল্া कप कौ तत्वबॉधिनी टीका के रचथिता माचा लानन्त्र प्नरस्वती ने आवेशों का [লিলি विधानन किया हैं - प्रत्यक्ष तथा आनपामिक | अत्यज्ष जाबश ই ^ म्तः सविंडित अस्त स्थानी को होनेताला হা आवैश एव आनप्रानिक झावैश है লি ८ तिप्‌ क दानवाला तु अश 1“ अन्तैः पे प्यानं एवं আোরক্গ शब्बत: उपर्िष्ट हए शै किन्त एक्ट खूब में इ मे हृकादान्त स्यान तथा त से उकारानल झावेश ममुगित हए है [6 माबैशों के फ््बन्ध में विचार करते इए कस मन्म लिधियों की और ध्यान जाता हैं| आगम, लौप, निपातन. त्व माति क विष्ठया प आदवैेश विधि के নাল वर्ण अथवा वर्णस्षम॒बाद का हटना और जुड़ना काि वेखा लाना ॐ, বাবার के 'सर्वे सर्वपदादेशा वाजक्षीपत्रस्थ पाणिनें:: 7? तथा *अनागग्रकानां सनागराः मदैशाः* $ दृत्यादि वयनं ভ্রাতা गधों नण आिष्टसप तधा 'सवररदिशार्थ जा वचनप्रामाण्यात्‌ > वार्तिक तथा वाधिकं कै विवेचन क्रम हमें - «७ लक श्ल जप: सवविशा यया হু ও 1 मआचार्यप्रवलतिलापयानति लका কাল मनप पझवविश वन्तीति + इत्याबि साष्यवचनों में ^ प्रत्यय क), লীঘ का मावेशरूप स्वसार शम्या পানা 21 दता प्रकराद छत्व कै प्रण में साष्यकार ने त्प फावेश ॐ পাশা जिरूष्चारण (पथय यस्य ्विवंचनगा-रम्यते कि. तस्य स्याने পালাল” म्व ভিত प्रयोग इतिम्ड - ग्रह्मयाष्य+ मादि विष्य पद विचार किया ह। इतना ही नहीं आठवे अध्याय के शरब्बाद्धित्व को इन्होंने ड्वित्वावेश स्वीकार किया छ) दयन प्रकार হালা कौ निपातन द्वारा सिख करने वाले श्या तै अदिशा ধলা निधातन होना प्यी बंगला লালা डे जैसे * कगयब्नययाँ शक्यार्थ * क्रययसनवर्श , ^ कययप्रतयमे ह्जन्च स्िः इत्याबिस्यत्ं द्वारा सवावेश निपातित इमा हैं। জের आगे इन লী, आगम [हत्व निपातन माति विधियों तथा প্ারাশিলি লরি লক লাশ লগা का स्नक्षिप्त লিলন্ঘল किया जाता है । 5 ५ | । शल्क को কসলিজি कै क्रम में लब प्रकृति था प्रत्थय के अवयत वर्णों क अतिरिक्त कोई गई अन्य वर्ण मी ख़ुवमाण हो तो इनके লা शस वणं मा योग कर . लिया जाता है। इम्त प्रकार का वर्णयोग-लिधान आगमगनिधान কলা গালা है। লঙ্া ২) ঘুকন हॉने वाले वर्ण को आगा कहते हैं। जिसे জোহা লী वह जमाग्धां कहलाता है।. नैत्तिरीय प्रातिशाब्य में आग का स्वरूप निम्न प्रकार से स्पष्ट विः 7 गदया | * मन्यन विद्यमानस्तु यौ वर्णः सपदि: 4 ^ ८५५१ अ म ्यपान तुल्मत्वात्‌ ফল माणप इति त्यात १ | * 1.3 ` (2 इस प्रकार प्रकृति प्रत्यय मँ विद्यमान व्ण क्रे জেলিঙিকল चिन्नी म्यी अन्यन्न । .. विद्यमान अधिक वर्ण की झति हो तौ र्ना मागत वणं मआागग्र कहलाता है शास्क्रकार (मागम कौ प्रपजणन कहते से पतजालि ने শী ठउपलन गप्र: विक्रार मादः ~ पप्ना कड़ा टॉकितो” स्ूप्रमाष्य में पूर्वपक्ष का उपस्थं ছি




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