पश्चिमी जर्मनी की राजनीति एवं प्रशासन | Pashchimi Jarmani Ki Rajneeti Avem Prashasan

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Pashchimi Jarmani Ki Rajneeti Avem Prashasan by दवनारायण आसापा - davnaarayan aasapa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रसिक वा जूस और विकास 65 था । उसी हत ने समाजाकरण पर वव लिया जिसके परिग्याम स्वरूप बसिक ला के 15ब द्रनुच्छ म यह्‌ पवस्या काग द्रि-- भूमि पकरि घ्याद तया एतानन के साधना का काबून हारा समाजाकरण क उन्-यक जिए साववनिक स्वामित्र या सावचनिक नियंत्रित प्रन व्यवस्था का हस्वातस्ति किया था सकता है । बह कानून मुग्राच्र ~ सह्वाप दे सामा का व्यव्ाया करया । श्य सुआ्रावत क सस्बध भे 14व अनुणः्०झठ का परशिटल ६3) का व्यवस्था बधाचित प्ररिवतत स साथ जागू हामी + हम प्रतार बंच्िक ता मे समातवाली লাল দ্য বলা ক শি লা গালনান मौजूट £। (ल) দাশক্েলা ৬ প্রথিল भ्रत्यपण् सवा शरण का श्रघिकार-राष्णयाय शाखा के उतये के साथ ही साथ नागरिकता का सहव ये गया है । नागरिकता के असाव में “पक्ति रायद्वीत हो चाता है । “सी तब्य वा हृष्टिगत रखता हए बक्षिक ला के 16वें श्रदुच्टल म यहू ग्रत्निकार टिया गया है প্রি विसी भा व्यक्ति का उसकी जमने सागरिकता से वचित नहीं किय्रा जाएगा । नागरिकता का समाप्ति कानुत के श्रनयते नया उस व्यक्ति वी रच्छा क दिगद्ध तमी हा खबला है चंद नागरिकता का अत हान से यह शायद्टान नहा हां ठाता | প্রন্য হী নহ্য साथ हा यह व्यवस्था भा का गई है कि कमी जरा उसमे का विलश मे গয়োণিন नन्या किया বাচা साथ हा यह व्यवस्था भा ” कि राजनातिक काराणया জ ঘাল্নি জলি বাসন্যা प्राप्ति का प्रशिक्रार है चाह बह 'यक्ति किसा भी दा वा निवासा हा ॥ (चर) याचिका प्रल्तुत करो का प्रधिकार--प्रन्‍ता शिक्रायता तथा श्रमुव्रिधाना का हर बरत के जिए प्रयक्ष तमत का अधिक्रार है प्रि वह सम्बद्ध अधिकारियों तथा লমশান समाग्री रू समत याचिका प्रस्तुत कर सक्ष । अनुच्छत 18 में बहा रा रै--प्रयत व्यक्ति का व्यन्तिमच रूप स या दूसरा ত্র শান লুল ল্য ন শিলিল प्रवेल्न या शिकायत प्रस्तुत करन का ग्रछियार है। ग्रावटन सम्पद्ध प्रथिशारियां लया समहीय कया के सम्मुख प्रा किया जा सकता है । (छ) मूत्र श्रषिद्वार छीतता ग्ट विणयदगाश्राम न्यनि क मूतर श्रविकाा से वंचित किया ता सकता है| ग्रजनहतल 18 में कहा गया है क्रि--जा कार व्यति स्वसत्र जबतात्रिक व्यवस्था से सधप करने के जिए पते “'यतत बरन को स्वचन्ता--- লাম বার समाचार पत्र की स्वतवता (श्रतु 7 5 का परिच्छ 1) वरना > श्रव्यापन थी स्वलश्रता (प्रवा 5 क्‌ 3) सना कटः का स्दनत्रना (ग्रनुररर 8) मध निमागं वा स्दनेदना शत्‌ = 9) दकि ददर मच्धार पप्नायठाकी म्वनत्रना श्रतु 10) मण्पति नुग 14) या शरण रानि ठ श्रपिक्रार (प्रनटः 16 का परिल (0) ) वा दू प्रयाग बरता है “सत्र ये प्रविकार गन লিহ বাহন । পলা ললালি नया ~मकी माम क वारम गधा म-्यनिर -यायातय निय वा न्प्र হয়ো ।




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