स्वर्गीय हेमचंद्र संस्मरण | Swwargiya Hemchandra Sansmaran (1932)

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Swwargiya Hemchandra Sansmaran (1932) by ए० जी० गार्डनरका - A0 G0 Gardenrka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ हेमचन्द्रजी श्री कृष्णानंद गुस बी० ए.० सन्‌ !३५ के लगभग जब मैं बंबई गया तब हेमचेद्रजीसे मिलनेका सौभाग्य प्रात हुआ था। वहाँ मैं हीरावागकी धमेशालामें ठदरा था और एक तरहसे प्रेमीजीका ही मेहमान था, किन्तु अपने कार्यमें मैं इतना व्यस्त रहा कि प्रेमीजीके समीप बैठने और उनके सत्संगसे लाभ उठानेका अवसर बहुत कम मिला । देमचन्द्रजी अवश्य मेरे साथ रहे । उन्होंने अपने दो-तीन दिन मेरे लिए खचे किये । मुझे बंबई घुमाई और मेरे अन्य कामोंमें अप्रत्याशित मदद दी | उनसे मिल कर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई । मैंने देखा कि वे कई विषयोपर अधिकारपूर्वक बोल सकते हैं। उनके वार्तालापसे उनके गंभीर और विस्तृत अध्ययनका जो परिचय मुझे मिला, वह मेरे लिए आश्रयंजनक था | साहित्य और बिज्ञानकी नवीनतम धारासे वे परिचित जान पड़े! समाज-शास्र शायद उनका प्रिय विषय था। विवाह ओर प्रेमकी समस्या पर वे अपने मौलिकं विचार रखते थे | हैवलॉक एलिस, किश, ब्लॉश, वैस्टर आदिक ग्ंथोंकी चर्चा उन्होंने मुझसे की | मुझे याद है कि अपने एक पन्नमें उन्होंने मुझे हैवर्लाक एलिसके सुप्रसिद्ध ग्रेथ साइकॉलॉजी आव सैक्स ( यौन-मनोविज्ञान ) का अनुवाद प्रकाशित करनेकी बात लिखी थी। उनकी इच्छा थी कि में बालकोंके लिए. सरलू-विज्ञानपर कुछ किताबें उनके लिए, लिखेँ। छुख है कि इसके बाद फिर उनसे मिलनेका अवसर मुझे नहीं मिला । उनके कुछ पत्र अवश्य मेरे पास आये । दुर्भाग्यवद वे नष्ट हो गये हैं। क्या पता था कि वे इतने शीघ्र संचयकी वस्तु बन जायँगे ! हेमचन्द्रकी विचार-शीलतासे मैं बहुत प्रभावित हुआ था। बंबईसे लौट कर आनेके बाद मेरा उनका बहुत दिनों तक पत्र-व्यवहार रहा; किन्तु उसके बाद ही मैं साहित्य-क्षेत्रे अलग हो गया । इस कारण उनके साथ मेरा सम्पर्क टूट गया। इधर मैंने उनके कुछ निबन्ध पढ़े ये | मैं कह्द सकता हूँ कि वे एक योग्य




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