साहित्य रश्मियाँ | Sahitya Rashmiyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३. रेखाचित्र मे भक्तयः जैसी सपूणं- सस्मरण में ये शब्द-चित्र परस्पर ता रहती है । हां, कयात्मकता प्रागे-पीछे जुडने वी उन्मुय्ता लिए द्योतक गति का भ्रश उसमे से रहते है, श्रत मुत्तक षी स्थिति व्यजित हो सकता है । उनमे नही रहती । ४ रेयाचित्र से चित्रित छवि सस्मरण में लेखक थी स्मृति से सप्रेत भर व्यजना पर प्राश्रित सामग्री ली जाती है, उनसे जुडी रहती है, प्रत यौद्धिव सवल शे भ्रनुमूतियो प्रौर भाव-रापत्ति भला- वह भाव-सवेदन तक पहुँचती वार का मुख्य सबल रहता है, उसके दै} आधार पर वह बौद्धिक व्यजनाप्रो पर पहुँचता है या पहुंचाता है। ५. रेपाचित्त में विसी छवि बे' रास्मरण में स्मृति ने जो रूप-रग बैशिष्टूय को प्रवित करने वार भर दिया है, झोर एक भात्मीय रस ही प्रयत्न होता है। से युक्त कर दिया है, यह चित्रण मे प्लावित मिलता है । सरमरण ये' सबंध में यह ठीक ही बह्दां भयां है कि यदि ये लेपक मे ग़ाथ जुड़े होते हैं तो प्रात्ममथा वी शलक दे उठते हैं भ्रौर यदि किसी प्रन्य व्यक्ति से जुडे होते हैं तो जीवनी का रूप लेने लगते हैं। किन्तु कभी- बी ये सस्मरण इतने रोचक हो जाते हैं, भौर ययातय्य से प्रधिफ वाल्प- निक लगने लगते है ऊि इन्हे कहानी भी वह दिया जाता है। सियारामशरण गुप्त ने 'रामसीला' को सस्मरण रूप मे लिया; पर बहुतो ने उसे कहानी ही माना है। यही महादेवी यर्मा के बहुत से सस्मरणों के राम्बन्ध में है, हैं सस्मरण पर “बढ्धानी' सगते हैं) यहीं महं यात भी समझ लेने की है वि रेपाचित्र निवध मे वर्णनात्मव पेद परी व्णनात्मयता पर यषा ह्वर भी प्रपनी गुणात्मगता में एकदम भिन्न हौ जाता दै । भयोरि रेयाचिद्र मे वणंनात्मक्ता रहती दै भ्रवश्य, पर ध्यान मे वर्णन प्रमुख नही रहता, उससे उभरता चित्र महत्त्व पा लेता है) निबध पभ्ादि से भ्रल्त तब' वर्णन से उलझा रहता है, भौर वर्णन वा कौशल ही उसमे हमे प्रभावित करता है । यर्णेनात्मव निवधमे भी विरी (৭৩)




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