इदम् | Idam

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Idam by राजानन्द - Rajanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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औरत, वासना, विलास और आसकित मात्र नही, इसबै अतिरित है। যা बेटी ? उहनि अम्वालिका से पूछा । मोह सौर यगा वा उत्सव है यह दह, मैने इतना ही जाना है, मा + पर वह॒ भी छिन गया + अम्बालिवा ने उत्तर दिया । चुप हो जा अम्बालिका, राजमाता दी मर्यादा का ध्यान रय । उमे भयभीत मत करो 1 वह वही वह रही है जसा उसने अनुभव करिया । विचित्रवीय अनियात्रित आवेग था, में जानती थी । अभिषेक हआ, राजा वना, पर क्या राज्य से उसे सरोकार रहा ? मरे और भीष्म व होते हुए वह अपने को छमुवत मानता रहा। तुम जसी दो रूपमिया वो पाकर उसका प्र मे मे डूदे रहना स्वाभाविक था। मैंने अतिरेक वी तरफ कई बार उसे सवत क्या लेकित वह इसम हम क्या वरत मा ? अम्बालिका ने प्रश्व किया । मैं क्या वर सकी, जो तुम कर पाती । कामटेव-सा दिखता था, पर युवा लागु वी लापरवाही और जिद भी तो थी। तिस पर भीष्म का विशेष लाड। मैंने जब भी भीष्म स कहा--इसको समलाओो। राज-काज के काम की समस्याओ से इसकी जानकारी कराओ। भीष्म कहत--खेलने, उत्सव मनाने के' दिन हैं। मन भर लेने दो। अभी स वया प्रपच म फ्साऊ । सत्यवती चौंकी | वह फिर बहने लगी अतीत की ओर। क्‍या हो गया है कि बहू नियाजण अपनाती है सपंट अनचाहे खुलत लगती है। जो कहना चाहती हैं, बह गौण होकर प्रमुख विचित्रवीय की स्मति हो जाती है। वह फिर सभली और अभिप्राय का सिरा पफ्डा--तुम काशीराज वी पृत्रिया हो। काशी राग विराग वा तीथ है। मैं मावती हू तुम दोनो म सस्वार स्वरूप प्रवत्ति निवत्ति दोनो है। अम्बिका वे! समझ म॑ नही आया वह क्‍या कह रही हैं। अम्वालिका खाली भाव-सा चेहरा लिये उद्दे देखती रही । नहा समझ मे आया ना। कसे समझाऊ मरी समय म नही आ रहा है। इतना जान लो कि तुम्ह भव परिपक्व होना है। भावना की ऋतु तुम्हारे लिए शेप हो गई। विचारवान वनो | औरत का एड पक्ष प्रेम है। उसका दूसरा पक्ष, वश की कडी को बढाना है। मैं हारी हुई हू कि यह कस होगा ? इस कत्तव्य पर भी सोचना चाहिये तुम दोनो को । हम आपके पुत्र की विधवा है जो अपने वधय को स्वीकार मही पा रही है । ऐसा होता है क्या ? इतनी जल्दी और जकस्मिकता से ? अम्बिका बोली । अम्बालिका की जाखा से फिर जासू वहन लग। सत्यवती खडी हो गई। परास्त हाते वी आभियक्ति उसक सलवटों वाले मुख पर स्पष्ट थी--स्वीकारना तो होगा । जब दूसरा चारा न हो तो अनचाहा इंदमू / १४५




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