पूजा के फूल | Pooja ke Fool

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Book Image : पूजा के फूल  - Pooja ke Fool

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारा चरम लक्ष्य ९. ই দুম ! हमारे वंशम दातार्ओंकी संख्या वदे, वेर्दोकी आलोचना सम्यक्‌ प्रकारसे हो } वंशपरम्परा वनी रहे, वेदपर भव्ठ श्रद्धा सदैव वनी रे ओर दान करनेके चि द्व्यका अभावे कमी नहो छग पुत्र तो भत्र भी चाहते हैं परन्तु अवमे जौर तवमे जडा अन्तर है, उस समयकी काम्य प्रार्थनामें भी जगतके मङ्गलकी भावनाको छोग भूलते नहीं थे, केवल अपना भला सोचकर ही वे निश्चिन्त नहीं हो जाते थे । समत्त विराटके साथ हमारा कितना गहरा संयोग है, इस तच्वकों शायद ही प्रृथ्वीपर कोई दूसरे छोग उपलब्ध कर सके हों, परन्तु हमारे पृर्वजोंकी सर्वोच्च प्रार्थना होती थी-- “मां रह्म निर्या मा मा ब्रह्म निराकरोद ।! मैं अ्क्षकों अखीकार नहीं करूँगा और त्रह्म भी मुझे अखीकार न करे । और आजकल केवल अपनी वात दही इतनी बड़ी हो गयी है कि जगत्‌का मद्नल तो दूर रहा अपने पड़ोसियोंके छख-दुःखकी वातेकि व्यि भी हमारे थन्तःकरणमे स्थान नहीं है । यह लक्षण अत्यन्त मोहग्रस्त अनायेकि हैं | परन्तु आज हमारे चित्तकी अवस्था देसी ही है इस बातको अखीकार कैसे किया जाय ! पहलेके छोग कहते थे--- कोऽथः पुञेण जातेन यो न विद्धान्‌ न धार्मिकः ।' उस पुत्रसे क्या छाम है कि जो न द्िद्रान्‌ है ओर न धार्मिक | परन्तु आजकछ सन्तान ययथार्य धार्मिक और संयमी है




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