जैन जगत की महिलाएं | Jain Jagat Ki Mahilayen
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
234
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जैन-जगत् की महिलाएँ (३
यता के उपासक ओर पोपक वन गये । तव हमारा घमं रहता भी
तो कैसे १ स्योकि जगन् मे गुम का कोई धमं और कर्म नहीं
होता |
नारी शिक्षिता हो
यदि नारी-शिक्षा में किसी प्रकार का भी कोई दोप कभी होता,
तो क्यों भगवान् ऋषभदेव হন अपनी पुत्री ब्राह्मी को पठा-लछिखाकर
पढिता बनाने १ नारी शिक्षा के विरोधियों को इस उदाहरण से बोध-
पाठ सीखना चाहिये । परन्तु ह| | आज की नारी-शिक्षा के हम भूछ
कर भी हामी नही, वरन् हम तो उनमें उस रिक्षा का प्रचार और
प्रसार चाहते है, कि जिससे उनका सन उदार ओौर संसत दो जावे
उनकी बुद्धि का पूरा-पुरा विकास हो पावे ओर वे स्वावरम्बी অল
सके । यदि नारिया ऐसी हो गई, तो दुनिया की फिर कोई मी महान्
शक्ति हमें दबा नहीं सकती । अत' यह सिद्ध हुआ; कि नारियों की
सच्ची शिक्षा ही में राष्ट्र के जीवन उन्नति और सरक्षण के वीज छिपे
रहते हैँ । तव क्या हमें भी अपनी सम्पूर्ण शक्तियों सेइस ओर न
जुट पडना चाहिए १
ब्राह्मी कौ दीक्षा
समय आया छपभदेवजी ने दीक्षा घारण कर भू-मण्डल पर
विहार किया] तप गीर संयम के द्वारा उन्होंने अपने सम्पूर्ण घत-
घाती कर्मा का स्वे-नाश करके दिव्य 'कैवल्य-ज्ञान' प्राप्त किया ।
विचरण करते-करते बे एक वार उसी अयोध्यापुरी मे पवारे । उनफे
पावन उपदेश को सुनने के छिए समी नगरवासी छोरा गये । ब्राह्मी
ने भी उसमे भाग छिथा । उस उपदेश का असर उनके हृद्य पर
इतना गहरा पड़ा, कि वे भी दीक्षा लेने पर उतारू हो गई । उनके
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