भारतीय संस्कृति और नागरिक जीवन | Bharatiy Sanskriti Aur Nagarik Jivan

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Bharatiy Sanskriti Aur Nagarik Jivan by रामनारायण 'यादवेन्दू ' - Ram Narayan 'Yadawendu'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दिय प्रचेत ९ युक्त होन थे, नागरिक कहलाते थे | राम और यूनान के नगर राज्या के निवासिया को 'नागरिक' कहा जाता था। उस समय नागरिकता स अभिप्राय नागरिक के अधिकारा से होता था और आधुतिक समय मनी नप्यरिकता से यही अभिष्ाय है । परन्तु आवुनिक युग में नगर राज्य नहीं हे | उनके स्थान पर राष्त- राज्य हू | बालास्तर में नागरिकता की भावता म भी परिवर्तन हा गया है । नागरिकता वा उदय राम वे छोरे-स नगर राज्य में हुआ, परन्तु आधु- लिक युग प वह समग्र दश राज्य और राष्ट्‌ राज्य में व्याप्त हो गयी है । प्रयेकं मागिन, चाद्‌ वह नपर निवासी हौ चाहे ग्राम निवासी, समानरूप से नागरिक अधिकारा वा उपमोग क्र सकता है । प्राफेसर डाए वतीश्र्ताद का यह मत है कि “अधिकारों के लिहाऊ से प्रामवासी भी उसी प्रकार नागरिक है जिस प्रकार झइहरवाले। यह बात जरूर हैं कि नगर राजनीतिक जोवन, घत सम्प्रता और सल्कृति के केद्ध हू, किन्तु इसका अर्यं यह्‌ नहीं है कि शहरवालों के हित के आगे हम गाँववालो के हित का विचार न करें । प्रामवासियों के हित को नगर वासियों वे हित वे अधीन करना उचित नहीं है । दोनों के हितो पर बराबर ध्यान रखता चाहिए । इसो प्रकार सवसे कामके को आशा भौ करनी चाहिए ! व्यवसाय घम्पत्ति- रक्षा, पाय, कौटुभ्विके जीवन्‌, घामिक तथा साहकृतिक स्वतत्रता, साव- जनिक् जीवन, तथा सध समिति के अधिकार ओर उनके साथ জম हुए कत्तेग्प गाँववालों से उतता ही सम्बन्ध रखत हे जितना कि नगर निवाप्ियों पे ।२ हिन्दी साहिय मे 'नागरिक झाद का प्रयोग नगर निवासी के अथे में प्राचीन समय स हाता रहा है 1 हिंदी म “नागर या नागरिक शब्द का ३ डा० बेतोप्रसाद नागरिक झांस्त्र चौयाआयाय, पु० ७४७५ (सन्‌ १९३७) द उपर्युक्त ॥




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