मानव हृदय की कथाएँ भाग - 2 | Manav Hridaya Ki Kathayen Bhag - 2

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Manav Hridaya Ki Kathayen Bhag - 2  by बाबू मदनगोपाल - Babu Madangopal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হক্ব ११ +^ सड़कपर, जुलाईंके सुर्यका प्रचेंड प्रकाश इस समय अत्यन्त লিটা पूर्वक पड रहा था । राहके दोनों ओर बने हुए छोटे-छोटे घर, घाममें मुन-से रहे थे और कुत्ते तक घरोंकी छायामें पे हुए पटरियोपर जहाँ বাঁ জী रहे थे । ऐसे कुसमयरम, दम फूछ जाने पर भी, बेचारे एलेकजुडरने मदी- की ओर जानेवारी छायायुक्त सडकपर जब्दीसे पहुँचनेके लिए तेजासे चलना प्र(रंभ किया । श्रीसत्ती ইমন হুল অজ জী বাই थी और उनके सिरपर रुगे हुए श्वेत छातेकी तानोंके कभी कभी छग जानेसे, उस सहिष्णु नौकरके मुखपर खुर्रेच हो जाती थीं। 'एकीदु तिलेइयर” नामक छाया-युक्त सडकके आते ही, वुक्षोकी छायामें श्रीमत्तीकी ऑख खुछी और उन्होंने कोमर स्वससे कहा-- ^“ बेटा, धरि धीरे चरो; ऐसी चालसे चकछकर क्या मौत छुछानी है ! ॐ नीबुओके मंडलाकर वक्षस सवथा ठकी हुदै इस राके निकट दी, ˆ साव्ते नामक नदी सपै-गतिसे ˆ विरो ` नामक रुतासे स॑डित करके मध्य, वह्‌ रही थी । नदीम गजेन करते हुए वर ओर चह्ानोसे टकरानेके कारण श्च छहरोंके उडते हुए जल-फण, इस समय टदलनेमे, सुंदर गीतेकाओँका सा आनन्द और छुद्ध वायुर्मे जीतछताका संचार कर रहे थे। इस सुन्दर स्थऊूकी आदे वायुमे अत्यन्त प्रसन्नतासे गहरे श्वास खीचनेके पश्चात्‌, श्रीमती सैरेसबैलने कुछ एक अस्फुट स्वरसे कहा--^ अव मेरा चिन्त तनिक ठिकाने रूगा; परंतु उनका स्वभाव आज भी बिगड़ रहा था|” ४ श्रीमतीजी ठीक कहती है, एलेकजेडरने उत्तर दिया। ” उत्तीस वपसि यह व्यक्ति इस दसम्पत्ति-युगछकी सेवा कर रहा था। सनै पथम सेना अरद्छीके रूस सेवा करनेके अनंतर, मालिको छोड- नेकी चाह न होनेके कारण, सेनासे विच्छेदं होनेपर, यद इनका निजी दास हो गया था; और गत छह वर्षसि तो अपनी स्वाभिनीको कुर्सीपर बैठाकर, यह तीखरे पहर नगरकी तंग गलियोंसे होकर, इसी प्रकारसे नित्य अति ही आया जाया करता था। सुदीये सेवा तथा नित्य भ्रति. सम्मुख रहमेके कारण, इस सेरसयी वृद्धा स्वामिनी, तथा स्वाभिभक्त सेवकका कुछ एक যান আছি चय भी हो चला था ।




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