छायावादोत्तर प्रबन्ध - काव्यों मेन भाषा और संवेदना का स्वरूप | Chhaya Vadottar Prabandh - Kavyon Men Bhasha Aur Sanvedana Ka Swaroop
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
341
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पोराणिक्ता ओर मध्ययूगीन प्रत्य हे पर उनके उपर न्ये युग के अनुरूप गाधीवाद,
मानवीयता ओर राष्ट्रीय चेतना का भी पर्याप्त प्रभाव हे यह अकारण नही ३
कि - राम तुम्हारा चरित स्वग्न ही काव्य हे । कोई कीव बन जाय सहज
सभाव्य है । - पर विश्वास रखने वाले गुष्त जी को सीता वनवासिनियों को
तकली कातकर खाली समय का उपयोग करने का उपदेश देती है । * बिहारी
मतिराम ओरं रतलीन ॐ दोही की सृष्टि एक ही मानसिक यत्रा लय हुई जान
पड़ती है, यद्पि उनकी कोटि और किष्ताओ में अन्तर है । एक ही साचै में
` ठले हए कवित्तो' ओर सवेयो' से पाठको का जी उन जाता था । परन्तु आ धनिक
काल मेँ एक्कवि की रचनाङ শী কী विवध स्पता मिलती है । प्रसाद * के
'झरना ग्न्य प्र अनेक्कयिताओ কা জা है जिसमे प्रत्येक . एक दूसरे से भिन्न
हे । पन्त की ” परिवर्तन नामक एक ही कविता में दो छन््द एक दूसरे से इतने
मिन्न हैं कि दोनों एक्ही कीव ढी रचना है, यह कहना कठिन हो जाता हे। ।
केवल हृदग त विगवधता ही नठर' अपित् भाषा को लेकर भी इस कविता में पया*प्त
वेविध्य दीखता है । ন্ট भाषा में दाता तक क्ति ^ भी उपलब्ध हे,
8» उपर नीला व्तिनतना था, नीचे या मेदान हरा ।
शून्य मार्ग से कमल वायू का आता था उल्लास भरा ।
कभी दोड़ने ला जाते हम, रह जाते फिर मुख्ध छढ़े ।
उड़ने की इचछा होती थो, उङ्ते देख वहग बडे ।
` = मेयिलीरूरण गृप्त, भारत भारती, ঘৃ০- 58
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