छायावादोत्तर प्रबन्ध - काव्यों मेन भाषा और संवेदना का स्वरूप | Chhaya Vadottar Prabandh - Kavyon Men Bhasha Aur Sanvedana Ka Swaroop

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Chhaya Vadottar Prabandh - Kavyon Men Bhasha Aur Sanvedana Ka Swaroop by वेणु सिंह - Venu Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पोराणिक्ता ओर मध्ययूगीन प्रत्य हे पर उनके उपर न्ये युग के अनुरूप गाधीवाद, मानवीयता ओर राष्ट्रीय चेतना का भी पर्याप्त प्रभाव हे यह अकारण नही ३ कि - राम तुम्हारा चरित स्वग्न ही काव्य हे । कोई कीव बन जाय सहज सभाव्य है । - पर विश्वास रखने वाले गुष्त जी को सीता वनवासिनियों को तकली कातकर खाली समय का उपयोग करने का उपदेश देती है । * बिहारी मतिराम ओरं रतलीन ॐ दोही की सृष्टि एक ही मानसिक यत्रा लय हुई जान पड़ती है, यद्पि उनकी कोटि और किष्ताओ में अन्तर है । एक ही साचै में ` ठले हए कवित्तो' ओर सवेयो' से पाठको का जी उन जाता था । परन्तु आ धनिक काल मेँ एक्कवि की रचनाङ শী কী विवध स्पता मिलती है । प्रसाद * के 'झरना ग्न्य प्र अनेक्कयिताओ কা জা है जिसमे प्रत्येक . एक दूसरे से भिन्न हे । पन्त की ” परिवर्तन नामक एक ही कविता में दो छन्‍्द एक दूसरे से इतने मिन्‍न हैं कि दोनों एक्ही कीव ढी रचना है, यह कहना कठिन हो जाता हे। । केवल हृदग त विगवधता ही नठर' अपित्‌ भाषा को लेकर भी इस कविता में पया*प्त वेविध्य दीखता है । ন্ট भाषा में दाता तक क्ति ^ भी उपलब्ध हे, 8» उपर नीला व्तिनतना था, नीचे या मेदान हरा । शून्य मार्ग से कमल वायू का आता था उल्लास भरा । कभी दोड़ने ला जाते हम, रह जाते फिर मुख्ध छढ़े । उड़ने की इचछा होती थो, उङ्ते देख वहग बडे । ` = मेयिलीरूरण गृप्त, भारत भारती, ঘৃ০- 58




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