कृष्णा-काव्य में भ्रमरगीत तथा नाथ सम्प्रदाय और तंत्र शास्त्र | Krishana Kavya Mein Bhramargeet Tatha Nath Sampraday Or Tantra Shastra

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Krishana Kavya Mein Bhramargeet Tatha Nath Sampraday Or Tantra Shastra by केशव नारायण सिंह -Keshav Narayan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्तरह कृष्ण साधारण नायक थे और गोपियाँ साधारण नायिकाएँ | परंतु आधुनिक-युग में कृष्ण के चरित्र के साथ न तो धार्मिक अलोकिक भावना का सामझ्स्य हो सका और न कृष्ण को साधारण नायक के रूप में ही स्वीकार किया जा सका ऐसी स्थिति में कृष्ण अब पुरुषोत्तम _ ये । इष श्रादशं-मावना के फल स्वरूप आधुनिक कवियों ने कृष्ण- चरित्र के अलौकिक भाग के साथ उनके रसिक रूप को भी स्वतंत्र रूप से स्त्रीकार नहीं किया है। इन कवियों ने अपने अपने ढ'ग से इस विषय को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। इस भावना के फल- स्वरूप भ्रमरगीत का उपालंभ-काव्य इस युग में नवीन रूपों में सामने ... आया है। राष्ट्रीय-सावना से प्रभावित होकर और उसमें आदर्श- भावना को मिलाकर सत्यनारायण कविरत्न ने श्रमरगीत प्रध॑ग को केवल यशोदा तक ही सीमित कर दिया है| यहाँ उद्धव नहीं हैं, चरन स्वयं कृष्ण ही अ्रमर के रूप में आते हैं। इसमें माता के हृदय ... की अभिव्यक्ति के साथ राष्ट्रीय-भावना की व्यंजना भी है । यदी आदश-मावना प्रियप्रवास में एक दूसरे रूप में मिलती है | उपाध्याय जी ने कृष्ण के चरित्र के साथ लोक-कल्याण की भावना ... जोड़ दी है। कथा-प्रतंग सभी प्रकार से ग्रोचित्य की सीमा में ही है | इन्होंने भ्रमर ओर पुष्प का संकेत किया है ओर उसके माध्यम से नारी की विवश॒ता का भी उल्लेख किया है| परंतु इस विवशता को कवि आदश का रूप देकर ही स्वीकार करता है | তুলসী हृदय से भक्त कोते हुए भी विचारों में आधुनिक प्रगति से पूण परिचित हैं | इस प्रसंग को गुप्तजी ने भक्ति-भावना के चरम-छ्षण को व्यक्त करने के लिए ही प्रस्तुत किया है। इस प्रतंग को लेकर भक्त-कवि या तो भावावेष में प्रेम के क्रमिक विकास को नहीं दिखा सके हैं, और या भक्ति तथा ज्ञान के तकों में ही उलमे रद गये हैं। परंतु गुप्तजी ने इस प्रतंग में पेम-साधना का पूण विकास दिखाया है। अन्य गोपियां यहां राधा को लेकर ही जैसे सप्राण हैं इससे कृष्ण के घरित्र में अनेक नारियों की भावना सामने `




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