मानव की कहानी- भाग 2 | Manav Ki Kahani Vol-II
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
142 MB
कुल पष्ठ :
612
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भानव इतिहास का आधुनिक युग (१५०० ई. से १९५० इ. तक}
थी-मानव चेतना युक्ति की ओर अभी उन्मुख हीन थी-उसको
स्वयं का आभास ही नहीं था | फिर ठीक ई. पू. की कुछ
शताब्दियों में इन काध्णय सम्यताओं से सवथा स्वतन्त्र दंग
से, एवं भिन्न देशों में यथा भारत, चीन, ग्रीस ओर रोस में,
कहीं स्यात् काष्णेय सभ्यताओं से पूर्व (जैसे भारत एवं चीन ?)
एवं ग्रीस और रोम में क्रा्ष्णेय सम्यताओं के उंत्तर काल मे-
इतिहास में सत्र्रथम एक उदात्त आध्यासिक क्रांति के दर्शन
होते है-मानव में उसकी चेतना का एक अभूतपूर्व निर्भय,
स्वतन्त्र प्रस्छुटन होता है । वह् प्रस्फुटन इतना मुक्त, आनंदमय
ओर पूर्ण मानों चेतना अपनी अनुभूति की निगृूढ़तम छोर को
छू चुकी हो-इसके आगे स्वानुभूति के लिये कुछ न बचा हो ।
निःसंदेह आज् तक मानव चेतना अपनी स्वानुभूति में उस छोर
के आगे नहीं पहुँच पाई है जिस छोर तक अपने प्रस्कूटन के उस
प्रारम्भिक युग में वह पहुँच पाई थी। उस युग में भारत में
मानव चेतना ने निःश्रेयष की-आत्म-स्वरुप परम प्रकाश एवं
परमानन्द की प्राप्रि कीः-्रीस में मानव चेतना ने सब प्रकार
की._अपरोक्त सत्ता से निभंय निः | सीधा देखा,
उसका पयवेक्षण किया, एवं जीवन ओर कला मे वस्तुत
अनुपम सौन्द्य की अव॒तारणा की; रोम में मानव चेतना ने
संमाजु रचना और संगठन का आधार सुव्यवस्थित नियम ओर
विधि ক ভুনা; चीन में मानव चेतना ने जीवन स्वरों की
পরদিন भष
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