जैन राम कथा | Jain Ram Katha
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
567
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
मधुकर मुनि -Madhukar Muni
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श्रीचन्द सुराना 'सरस' - Shreechand Surana 'Saras'
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ३६ )
निर्भय किया, शासकों को प्रजा की सेवा के लिए प्रेरित किया। यह उसक।
प्रताप ही था कि उसके राज्य में जनता सुखी और समृद्ध थी। धन्य-धान्य
और सुख-समृद्धि से आप्लाबित सोने की लंका तो वैदिक परम्परा को भी
मान्य है ।
रावण के चरित्र में केवल एक ही दोप है भौर वह है छलपूर्वक सती
सीता का अपहरण । वह सीता की विरहाग्नि में तिल-तिल जलता है, छट-
पटाता है किन्तु नहीं इच्छती नारी को नहीं भोगुंगा अपने इसं नियम का
भंग नहीं करता, अपने वश में पड़ी सीता पर बलात्कार नहीं करता । वह अपनी
गरिमा को कायम रखता है और शूर्पणखा की तरह सीता को न अपमानित
करता है और न ही कुरूप बनाता है (जैसा कि श्रीराम लक्ष्मण ने किया था) ।
उसकी प्रतिशोधाग्ति इस सीमा तक नीचे नहीं गिरती कि अपने भानजे और
वहुनोई के भ्राणान्त करने वाले तथा बहुन का अपसान करने वालों का बदला
सीताजी से चुकाता ।
जैन परम्परा में रावण का चरित्र पाप की प्रतिमूर्ति के रूप में चित्रित
न होकर एक ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है जिसमें गुण भी है
और दोष भी हैं | सीताहरण ही उसका ऐसा अक्षम्प अपराध है जिसके कारण
उसका नाश हुआ, लंका का विध्वंस हुआ और राक्षस जाति भी पतन के गे
में सदा के लिए समा गई ।
कुम्भकर्ण
कुम्भकर्ण राक्षतराज रावण का अनुज था। वैदिक परम्परा के अनुसार
वह महा आलसी और छह महीने तक सोने वाला है । उसका रूप भी भयभीत
करने वाला है। वह अति विशाल शरीर ओर तामसी वृत्ति वाला है। उपकः †
क्रेबल एक ही गुण है और वह है रावण की आज्ञा पालन करना । उसकी
आज्ञा से वह राम के विरुद्ध युद्ध भूमि में जाता है, अपना वले प्रगट करता हैं
ओर राम के वाण से वीर गति प्राप्त करके मुक्त होता है ।
जैन परम्परा इसका नाम भानुकर्ण मानती है। इसके भचुसार वहन
आलसी है और न ही उसका रूप भयोत्पादक है । वह छह महीने तक सोता
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Jain Sanjeev
at 2019-09-11 08:53:35"Jain Ramayan"