जैन राम कथा | Jain Ram Katha

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Jain Ram Katha by मधुकर मुनि -Madhukar Muniश्रीचन्द सुराना 'सरस' - Srichand Surana Saras"

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मधुकर मुनि -Madhukar Muni

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श्रीचन्द सुराना 'सरस' - Shreechand Surana 'Saras'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३६ ) निर्भय किया, शासकों को प्रजा की सेवा के लिए प्रेरित किया। यह उसक। प्रताप ही था कि उसके राज्य में जनता सुखी और समृद्ध थी। धन्य-धान्य और सुख-समृद्धि से आप्लाबित सोने की लंका तो वैदिक परम्परा को भी मान्य है । रावण के चरित्र में केवल एक ही दोप है भौर वह है छलपूर्वक सती सीता का अपहरण । वह सीता की विरहाग्नि में तिल-तिल जलता है, छट- पटाता है किन्तु नहीं इच्छती नारी को नहीं भोगुंगा अपने इसं नियम का भंग नहीं करता, अपने वश में पड़ी सीता पर बलात्कार नहीं करता । वह अपनी गरिमा को कायम रखता है और शूर्पणखा की तरह सीता को न अपमानित करता है और न ही कुरूप बनाता है (जैसा कि श्रीराम लक्ष्मण ने किया था) । उसकी प्रतिशोधाग्ति इस सीमा तक नीचे नहीं गिरती कि अपने भानजे और वहुनोई के भ्राणान्त करने वाले तथा बहुन का अपसान करने वालों का बदला सीताजी से चुकाता । जैन परम्परा में रावण का चरित्र पाप की प्रतिमूर्ति के रूप में चित्रित न होकर एक ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है जिसमें गुण भी है और दोष भी हैं | सीताहरण ही उसका ऐसा अक्षम्प अपराध है जिसके कारण उसका नाश हुआ, लंका का विध्वंस हुआ और राक्षस जाति भी पतन के गे में सदा के लिए समा गई । कुम्भकर्ण कुम्भकर्ण राक्षतराज रावण का अनुज था। वैदिक परम्परा के अनुसार वह महा आलसी और छह महीने तक सोने वाला है । उसका रूप भी भयभीत करने वाला है। वह अति विशाल शरीर ओर तामसी वृत्ति वाला है। उपकः † क्रेबल एक ही गुण है और वह है रावण की आज्ञा पालन करना । उसकी आज्ञा से वह राम के विरुद्ध युद्ध भूमि में जाता है, अपना वले प्रगट करता हैं ओर राम के वाण से वीर गति प्राप्त करके मुक्त होता है । जैन परम्परा इसका नाम भानुकर्ण मानती है। इसके भचुसार वहन आलसी है और न ही उसका रूप भयोत्पादक है । वह छह महीने तक सोता




User Reviews

  • Jain Sanjeev

    at 2019-09-11 08:53:35
    Rated : 10 out of 10 stars.
    "Jain Ramayan"
    Best book on Jain Ramayan
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