क्रांति योगी श्री अरविन्द | Kranti Yogi Shree Arvind

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परतंत्र भारतं--काली रात्रि और उपा-काल १३ कर दिया गया और वहा का माल भारत के बाजारों पर थोप दिया गया! गौर इस घ्यापारिक सुविधा के लिए भारत में रेलो व सडकों का जाल विछाया जाने लगा। किसान निधन होता गया, अंग्रेजों के दलाल जमीदारों और साहूकारों ने शोपण करके भारतीय अर्थव्यवस्था के आधार कृपक को रकतहीत कर दिया। हस्तशित्प, कला, कृषि और वस्तुत. सम्पूर्ण ग्राम-जीवन ही ध्वस्त हो गए। মাং के कोप से अंग्रेज अफसरो को दिए गए बड़े-बड़े वेतनों, सेनाओं द्वारा 'राजाओं, नवाबो आदि के कोपो की लूढ इत्त्यादि के द्वारा भी इंग्लैंड को सुवर्ण, चांदी, हीरो व मोतियों से भर दिया गां। कम्पती के द्वारा भारत का आधिक शोषण दती तेजी से हुआ कि भारत शीघ्र ही कगाल हो गया और उसके धनसे ब्रिटेनही नही, यूरोप के अन्य देश भी धनी ही उठे । इंग्लैण्ड की औद्योगिक त्रान्ति भारत के शोपण का ही परिणाम थी ।* यही नहीं, भारत को ईस्ताई बनाने के प्रयत्नों मे भी विदेशी चर्च जोरों से जुट गए । विदेशी पादरियो से भारत भर गया। जोर-जवर्दस्ती तथा लोभ-लालच के आमुरी मार्गों तथा पैशाचिक विधियों से सहद्नो हिंदू व्यवित्र्यों व परिवारों को ईमाई बनाने में भले ही सफलता पा ली गई किन्तु अन्तत. यह इतिहास सत ईसा के नाम पर सबसे काला धब्दा ही माना जाएगा। अग्रेजों ने बहुत सोच-विचारकर थग्रेजी स्कूलों-कालिजों की स्थापता का जो निर्णय लिया उसका भी भारत पर गभीर परिणाम हुआ। ईसाई शिक्षको के द्वारा छात्रो के कोमल मन पर जो राष्ट्रदोही विचार डाले जाने लगे तथा जो 'बाबुओ' का नया वर्ग उपजाया जाने लगा उसदा परिणाम 'काले साहबो' की निर्मिति में हुआ । अग्रेद्यों का स्वप्न यही था कि ऐसे काले अग्रेजों से भारत को व्याप्त करके उसे इंग्लैणड-जैसा ही बना दिया जाए। कुछ अंग्रेजों वी दृष्टि भारतीय पुरातत्व, वास्तुकला, संसकेत-साहित्य आदि को और गई | भारतीय इतिहास को अपने उद्देषयपूर्ण ढंग से प्रस्तुत्त करने वाले अग्रेज लेखकों ने पुरातत्त्व की सामग्री इत्यादि के भी मनमाते विश्लेषण किए। भारतीय सस्कृति, धमे इत्यादि के गंभीर तत्त्वो मे अनभिन्न इन विद्वानों ने जो कुछ लिखा उममे विक्ृतियों का इतना बडा भडार भर दिया गया कि उसमें से अमृत कम, विप ही अधिक प्रकट हुआ 1 अंग्रेज़ो के द्वारा अपनाए गए मार्गों का एक सीधा परिणाम यह हुआ कि শাহ तीयो का एक ऐसा वर्ग तैयार होने लगा जो आत्मविस्घृत, अग्रेज-भक्त तथा भार- तीय समाज से घृणा करने वाला था । अग्रेजो को अत्यन्त परोपका री, अग्रेजी शासन १, द्रष्टब्य--दादाभाई नौरोजी, रमेशचन्द्र दत्त, अरविन्द पोहयर इत्यादि पी तत्सम्वन्धी इेतियाँ तथा एफ० जे० शोर, मदिगोमरी भा्दित आदि की स्वीकृतिया।




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