श्री एकनाथ चरित्र | Shri Eknath Charitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ६ ) आर पीछे उनके सदाचरणसे मुग्ध होकर उनके भागवत प्रन्थ- का जयजयकार किया; इसी फिर दासोपन्त और नाथकी 'मेंट, नाथकों पानेश्वर महाराजके दर्शनोंका छाभ और गाववा- फा चरित्र वर्णित हुआ हूँ । ग्यारहवें अध्यायमें उनकी सन्ततिका घर्णनकर उनके नाती मुक्तेश्वर और पुत्र हरि- पण्डितका परिचय करा दिया है। नाथ और हरिपरिडतमें 'पररुपर विरोध और फिर मेल फैषे हुमा यष्ट बतछाकर नाथके निर्याणकालका घरणन किया है और धारमे नाथकी बड़ाई 'बड़ोंने कैसे बखानी है यह बतलाया है| ये सब वातें, ये बारद्द अध्याय पदुनेसे यच्छी तरसे माद्टूम होगी । गरहस्थाध्रममें 'रहते हुए. एकनाथ महाराजने अपनी बह्मर्थितिको अखण्ड रखा | नाथका-सा मनोहर चरित्र नाथका ही है| इसकी फोई दूसरी उपमा नहीं। भ्रीक्षेत्र पैठणमें में पन्‍्द्रद दिन रद्दा, इस बीच जो बातें मालूम हुई उनसे भी इस चरित्र-लेखनमें मुके बड़ा কাম हुआ। में इस चरित्रमाठाकों उपयक्त भावुक, रसिक सौर चिक्रित्सक तीनोंके प्रधान शुर्णोका आद्र करते हुए तैयार करनेवाला हँ । कार्यारम्भ हो गया है ओर देतु यदी कि दरि, हरिभक्त ओर हरिनामके विपये अपना ओर अपने पाठकोंका प्रेम और आदर बढ़े और सन्त-चरित्रके दर्पणं अपना निजरूप हम रोग देख सकं । आत्म-शुदधिका इसके सिवाय ओर कोई दूखरा साधन सुभे नदीं दिखायी देता । श्रवणे, मनन ओर निद्रिध्यास सवका फल सन्तोके संगते प्राप्त होता र 1 सर्न्तोका शुणगान जीवको भिय रै,




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