कर्त्तव्य - शास्त्र | Kartttavya - Shastra

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Kartttavya - Shastra by गुलाब राय - Gulab Raay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ५ । फिर इसे पढ़ने व रटने से क्‍या लाभ ? জন धर्म ओर कत्ततव्य-शाल की नीति के ग्रंथों से हमें कक्तेव्याकरसंब्य सार्थथता में... निर्णय करने में सहायता मिल जाती है, फिर शंका! एक नए कत्तंव्य शास्त्र की क्या आवश्यकता हैं? तथा कत्तव्य पर विचार करते ही कक्तंब्य मे शंकाए होने लगती हैं और धघर्मच्युत होने की संभावना रहती है, इससे कन्तव्य के विषय मे विचार उठाना ठीक नहीं । इन तीनों प्रक्षो पर एक एकः कर के विवेचन! की जायगी । प्रायः बहुत से ऐसे अवसर भी आते हैं, जब कि बड़े , आदमियों को भी कक्तेव्याकत्तेब्य-निर्णेय में कि-कत्तेव्य-विसूड़ हो धजुधांरी अजन की भॉति कहना पड़ता हला शंका का है, कि “ पृच्छामि त्वां धर्म संसूढ़चेताः | ! समाधान । ऐसे अवसर पर हमको एक ऐस निर्णायक की आवश्यकता होती है, कि जिसके द्वारा हम किसी आदशों अथवा धार्मिक सिद्धांतों के बीच में से एक को निधारित कर ले । करक्तेब्य-शास्त्र ऐसे समय पर हमारी सहायता करतः है ¦ कभी कभी हमारे सामने ऐसी समस्याएं उपस्थित हो जाती है, जब कि सत्य बोलने से बड़ा भारी अनथथ, जैसे दसरो की हानि इत्यादि होना संसव होता है, और सत्य न बोलने से सत्यान्नास्ति परो धर्म: ' के विरुद्ध आचरण करना पडता है। पसे स्थानो म भट बोलना या मूक रहना, जो कि एक प्रकार “का- छिपा हुआ असत्य भाषण ही है, श्रेय भाना गया है और सत्यान्नास्ति परो धमेःः इसको उत्सगे मान कर हम परोपकार के विषय मे अपवाद को स्थान देते हैं। यह बात तब ही ठीक पडती दहै, जब कि हम परोपकार को उच्चतम आदश मानते




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