नानसार ज्ञानसर | Nan Shar Gyanshar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्ञनसार सठीक ६ [९ अर्थ-जिन्होनि कपायें जीत ली ह॑ रसे योगीश आते-रोठ, धर्म शुद्ध च्यार प्रकारका ध्यान कहते हैं 1 दुर्ष्यान घणन-- 'तेब्रोलकुसमलेबणश्रसणपियपुत्तचितण अद्रे । बंधणडडणवियारणमारणचिता रउद्दमि ॥ ११॥ तौडुछकुमुमडपनमूषणप्रियपुत्नचितन आने | अधनदहनविदारणमारणलिता रौदे ॥ ११ ॥ चपा । पान फूछ छेप रू सुत সালা, জিন শী টা সার হি ध्याता । यधन जान वीरण घाना, चिंते सो हो रोद्ध हि ध्यातता ॥९१॥ अपरै-पान पुष्प सुगेधिडिपन भूषण, प्यास, पुत्रादिका चितबन आतैध्यान है। और बांधना, जलाना, चीगना, मारना इत्यादि चिंतवन रौदरध्यान है । अस्यत्र इस प्रकार कहां दै--- अपनी ग्रिय वस्तु जो घन कुठुम्मादि तिनके वियोगम उनके मिलनेके लिये बाखार जिंतवन करना इश्टवियोग आत्तध्यान दै । अप- नेको दुखदायी दुख्िता घत्रु आदिके संयोग वियोगके लिये सिंतवन करना अनिष्ट संग्रोग आर्तत्यान है। अपने शरीरं गेग इत्यादि होनेपर दृ९ द्वोमेके लिये बार्वार चिन्तन कमना पीडा चिग्तवन आतध्यान है और भावी सांसारिक सु्खोंके छिय পিল करना निदान वध आर्तध्यान है। आर्त जथवा दुखके लिये ध्यान अथवा चितवन सो आततेध्यान, यह ध्यान छठे गुणम्धान तह होय है, निदान चंधके बिना | ओर सैद्रध्यान भी च्यार पहना है। হিলারি थिन




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