वैज्ञानिक विकास की भारतीय परम्परा | Vaigyanik Vikas Ki Bhaartiya Parampra

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Book Image : वैज्ञानिक विकास की भारतीय परम्परा  - Vaigyanik Vikas Ki Bhaartiya Parampra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शहद के अर्थ में नहीं आया है। कोई भी मौठी चीज मधु कही जाने छगी, और बाद को कोई भी स्वादिष्ट पदार्थ मधु बन गया । यह सोम का भी पर्याय बना | शकंरा ओर ईख भी मधु और मधुवनस्पति बन गये अटकारसूप से राष्ट्र के सात मधु ये हैं राजा; धेनु, बेल, चावछ, जो और मधु | सधुसंचय करनेवाली मधुमक्खियों का वैदिक नाम सरघा' है। सरधा जिस वस्तु को बनायें, वह सारघ अर्थात्‌ मछ हुआ | ऋग्वेद के दो स्थलों पर इस प्रकार वर्णन अमता है मध्वा संपृक्ताः सारघेण धेनवस्तूयमेहि द्रवा पिब } ८181८ आरंगरेव मध्वेरयेथे सारघेव गवि नीचीनवारे । कीनारेव स्वेदमाससिष्विदाना क्षामेवोजी सूयवसात्‌ सचेथे ॥ १०।१०६।१९० अथर्ववेद में शो स्थलों पर अश्विना सारबेण मा मधुनांक्त झभस्पती' यह वाक्य आया है (६।६९२ और ९११९) ग्रीफिथ ने मध्वा संप्क्ताः० संत्रमाग का अर्थ किया है कि दूध शहद की सक्खियों के मधु से मिलाया गया है। शीघ्र आइये ओर पीजिये।' विछसन ने सधु का सोम के साथ मिलाया जाना लिखा है 4 आरंगरेव० मंत्र का अर्थ ग्रीफिथ के शब्दों में यह है--1.11€ {0111112 706९७, ९६2 7172 10 ४5 ४०प7 10169, 95 106০5 11760 1176 17105 1172 09215 00ज्ञ1ए७9170, ( 1116 10169- 001701) 15 00101105160 10 ৪, ৮9161 91011] 111৮5£160. ) अथर्ववेद में सरघा के अतिरिक्त उसी सूक्त में (९१) एक मंत्र में शहद की सक्खी कै किए (क्षाः ( ९।१।१७ ) शब्द्‌ भी आया है-- यथा मक्चा इदं मधरु न्यञ्जन्ति मधावधि' ( जैसे सक्खियाँ मधु को छत्ते में छोड़ती हैं )। अन्य स्थानों पर अथर्व में मक्षिका शब्द का प्रयोग साधारण मरविखियों के छिए ही हुआ है (११॥२।२; ११॥९॥१०;:११।१०।८) । सक्षा के अतिरिक्त मधुमक्खियों के लिए एक शब्द सघुकृत' भी आया है ( न कि मधुकर )--यथा मधु मधुकृतः संभरन्ति मधावधि! (९।१।१६) ( जेसे मधुकृत्‌ मधुकोष में मधु भरते हैं )। इस प्रकांर मघुमक्खी के लिए अथव में तीन शब्दों का प्रयोग हआ है--मक्ष, मधुकृत्‌ ओर सरघधा। मधो+अधि का अथ संघुकोष € | पात्र, भाण्ड और उपकरण अग्नि की खोज ने भोजन की कला को प्रोत्साहन दिया ओर भोजन की कला ने हमारे प्रारम्भिक माण्ड और पात्रों को जन्म दिया। भोजन-सामग्री तैयार करने, ओर संग्रह करने के उपकरण ओर उसके साथ भोजन परोसने के उपादानों का विकास हुआ | यज्ञ-क्ृत्यों के भी उपकरण बहुत-कुछ उसी प्रकार के बने | यज्ञ-कृत्य गाहं- (२१) यो वें कशायाः सप्त मधूनि वेद्‌ मधुमान्‌ भवति । ब्राह्मणदच राजा इ ध्रेनुश्वान डवांश्च बीदिश्च यवश्च मधु सप्तमम्‌ ॥ (जथवं ९।१।२२)




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