गिरिजाकुमार माथुर नयी कविता के परिप्रेक्ष्य में | Girijakumar Mathur Nayi Kavita Ke Pariprekshya Men
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उग्रक्तित्व (रचनाएं) और परिवेश १५
अनुमूति के इस चित्रांकन में परिवेश भी अपने पूरे प्रभाव के साथ चित्रित हो
गया है। रोमांसपूर्ण परिवेश से सम्बन्धित उनकी कुछ अन्य कविताएं हैं---'रेडियम
की छाया, “चूड़ी का टुकड़ा, “रात हेमन्त की, “वसन्त की (रात, रेडियो कवि-
-सम्मेलनः ।
गिरिजाकुमार माथुर की रचनाओं में संयोग के क्षणों की रंगीन भावनाझञ्रों का
ही नहीं, विरह॒ की मार्मिक पीड़ा का भी चित्रण है। वेयक्तिक दुःखों, निराशा, अस-
-फलता तथा घुटन का उन्होंने सफलता से चित्रण किया है ॥ यथा---
“व्यार बड़ा निष्ठुर था मेरा
कोटि दीप जलते थे मन में
कितने सरु --तपते यौवन में
रस बरसाने वाले आकर
विष ही छोड़ गए जीवन में 1
वयक्तिक वेदना और निराशा को व्यक्त करने वाली उनकी प्रमुख कविताएँ
हैं-- दूर की সাহা”, 'रूठ गए वरदान सभी” विदा समय, मै केसे श्रानच्द मनाऊ 1
वेयक्तिक गीतकारों की भाँति माथरजी ने भी सीधी और सरल भाषा को
अपनाया । रस और रोमांस के गीतों में कोमल, श्रुतिमधुर और बोलचाल के शब्दों
का ही प्रयोग किया है। अपने गीतों को लक्षणा और व्यंजना के क्लत्रिम आवरणों से'
बचाने का प्रयास किया है । उनकी कविताओं में मुक्त छन््द श्रौर आन्तरिक संगीता-
त्मकता की प्रधानता है |
माथ्रजी की काव्य-चेतना में सामाजिक चेतना का भी संस्पर्श मिलता है।
यहां श्राकर उनके वेयक्तिक सुख-दुःख समष्टि के सुख-दुःख हो गए । ऐसी कविताप्रों
में श्राधुनिक जीवन की कटुता, संघर्ष, घुटन और अवसाद का चित्रण हुआ है । यान्त्रिक
सभ्यता ने मनुष्य को कठोर, शुष्क. और संवेदनहीन बना दिया है । यान्त्रिक सम्यता
के शिकंजे में मानवीय संवेदना दम तोड़ रही है---
लोहे के दिल दिमाग हाय इस्पात के
निरवधि समयकोनजोम्रंकों জী আঁ
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चलते हैँ तार †खचे मध्यवगं के पुतले
रोल्ड गोल्ड का कल्चर च ्रकते सुलम्मे से
लोहा, सीमेंट, कांच, कोलतार
श्रात्स-विहीन एक्छ दंत्य-देह महाकार ॥**
৭, मंजीर-- माथुर, पु० ५६
९, शिलापंख चमकीले---माथुर, पू० ७१-७२
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