गिरिजाकुमार माथुर नयी कविता के परिप्रेक्ष्य में | Girijakumar Mathur Nayi Kavita Ke Pariprekshya Men

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Girijakumar Mathur Nayi Kavita Ke Pariprekshya Men by विजय कुमारी - Vijay Kumari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उग्रक्तित्व (रचनाएं) और परिवेश १५ अनुमूति के इस चित्रांकन में परिवेश भी अपने पूरे प्रभाव के साथ चित्रित हो गया है। रोमांसपूर्ण परिवेश से सम्बन्धित उनकी कुछ अन्य कविताएं हैं---'रेडियम की छाया, “चूड़ी का टुकड़ा, “रात हेमन्त की, “वसन्त की (रात, रेडियो कवि- -सम्मेलनः । गिरिजाकुमार माथुर की रचनाओं में संयोग के क्षणों की रंगीन भावनाझञ्रों का ही नहीं, विरह॒ की मार्मिक पीड़ा का भी चित्रण है। वेयक्तिक दुःखों, निराशा, अस- -फलता तथा घुटन का उन्होंने सफलता से चित्रण किया है ॥ यथा--- “व्यार बड़ा निष्ठुर था मेरा कोटि दीप जलते थे मन में कितने सरु --तपते यौवन में रस बरसाने वाले आकर विष ही छोड़ गए जीवन में 1 वयक्तिक वेदना और निराशा को व्यक्त करने वाली उनकी प्रमुख कविताएँ हैं-- दूर की সাহা”, 'रूठ गए वरदान सभी” विदा समय, मै केसे श्रानच्द मनाऊ 1 वेयक्तिक गीतकारों की भाँति माथरजी ने भी सीधी और सरल भाषा को अपनाया । रस और रोमांस के गीतों में कोमल, श्रुतिमधुर और बोलचाल के शब्दों का ही प्रयोग किया है। अपने गीतों को लक्षणा और व्यंजना के क्लत्रिम आवरणों से' बचाने का प्रयास किया है । उनकी कविताओं में मुक्त छन्‍्द श्रौर आन्तरिक संगीता- त्मकता की प्रधानता है | माथ्रजी की काव्य-चेतना में सामाजिक चेतना का भी संस्पर्श मिलता है। यहां श्राकर उनके वेयक्तिक सुख-दुःख समष्टि के सुख-दुःख हो गए । ऐसी कविताप्रों में श्राधुनिक जीवन की कटुता, संघर्ष, घुटन और अवसाद का चित्रण हुआ है । यान्त्रिक सभ्यता ने मनुष्य को कठोर, शुष्क. और संवेदनहीन बना दिया है । यान्त्रिक सम्यता के शिकंजे में मानवीय संवेदना दम तोड़ रही है--- लोहे के दिल दिमाग हाय इस्पात के निरवधि समयकोनजोम्रंकों জী আঁ >< তি ক चलते हैँ तार †खचे मध्यवगं के पुतले रोल्ड गोल्ड का कल्चर च ्रकते सुलम्मे से लोहा, सीमेंट, कांच, कोलतार श्रात्स-विहीन एक्छ दंत्य-देह महाकार ॥** ৭, मंजीर-- माथुर, पु० ५६ ९, शिलापंख चमकीले---माथुर, पू० ७१-७२




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