रत्नाकर और उनका काव्य | Ratnakar Aur Unaka Kavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
211
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ৭. ]
लोकप्रियता चाहने वाले कवि पट्भाषा में ही काव्य-रचना करते थे तथा
उनके प्रांतों के अनुसार ( उनकी भाषा में ) विशेषता आ जातो थी । शूरसेन-
प्रदेश में अधिक काव्य-रचना हुई। अतः षट्भाषा ने साहित्यिक शोरसेनो
का रूप धारण कर लिया। कालान्तर में व्ज्ञ में अधिकतम रचनाएँ हुईं ओर
साहित्यिक शोौरसेनी में व्रज के शब्दों एवं रूपों का बाहुल्य हो गया । इस प्रकार
यह साहित्यिक भाषा डी मुख्य भाषा बन गई ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि आरस्म से ही व्रजभाषा के आदि रूप को
ही सर्वदा सवप्रथम स्थान प्राक्त रहा तथा मजते रहने के कारण इसका रूप
निखर आया ।
हिंदी-साहित्य के आदिकाल में डिंगल एवं पिंगल भाषा की रचानाए चज
के ही निकट की थीं और इनमें ध्रज का ही महत्त्व रहा ।
इसकी व्यापकता सं० १७८७ विक्रमी से बढ़ गई जब श्री वल्लभाचायंजी
का देहान्त हुआ और गोवद्ध न-पर्वत-स्थित श्रीनाथ के मंदिर में भजन एवं
संकीतन का उत्तरदानीत्व सूर के ऊपर पड़ा। १६ वीं शताब्दी इस भाषा का
स्वणेयुग माना जा सकता हे । धार्मिक आश्रय के साथ ही इसे सुगलकाल में
राजाश्रय भी प्राप्त हुआ ओर व्रजभापा का काव्यकतेत्र मे प्रायः एकच्ुत्र राज्यो
गया । यद्यपि इस समय इसका स्वरूप अव्यवस्थित था। इस युग में अवधी
में भी रचनाएं होती रहीं, किन्तु इसमें तुलसीकृत-रामचरित-मानस तथा
जायसीक्ृृत-पद्मावत ये दो कृतियाँ ही प्रधान हैं।
भक्तिकाल मे कृष्ण के उपासक सभी कविर्यो ने स्वभावतः चज को ही
अपनी काव्य-भापा का श्रेय दिया तथा राम-भक्ति शाखा के भी पर्याप्त कवियों
ने प्रज में ही रचनाए कीं। शास्त्राचायं होने के कारण कैशलवने मापा को परि
माजित बनाने का प्रयास किया ।
रीति-काल मे भी प्रायः सभी कवियों ने रज को ही अपनाया । विहारी ने
साहित्यिक व्रजभाषा के सुश्ःखल रूप का दढ़ ढाँचा स्थिर कर श्रमपूर्वक उसी के
अनुसार शब्दों का प्रयोग किया । किंतु अन्य-कवि पुरानी परिपाटी के अनुसार
ही रचना करते रहे जिससे उनकी व्रजभापा शिथिल ही रही। विहारी के
पश्चात् आनंद्धन जी ने शुद्ध एवं सभ्य सम्पन्न भाषा का प्रयोग किया ।
आधुनिक युग में भारतेंदु युग के प्रायः सभी कवियों ने ब्रजभात्व को ही
अपनी काव्य-भाषा बनाया । यद्यपि इसी युग से गद्य के साथ पद्च-रचना भी
खड़ी बोली में करने का प्रयास आरम्भ हो चुका था।
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