पुकार | Pukaar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रागिनी कचहरी से लोठे मधुवन के सामने वृह रघुनाथ ने तार का लिफाफा बढ़ाकर कहा--“अभी-अभी आया है !? लिफाफे को हाथ में छेते ही सधुब॒न का चित्त अनेकः आशद्काओं से भर उठा । छिफ्राफा फाड़कर पढ़ते हो उन्होंने रघुनाथ से कहा--“रविनाथ फी हाछूव बहुत खराब है, मुझे इसी सात बजे की तृफान सेल से ज्ञाना है। चीजें सब ठीक कर रखो ।”? “बहुत अच्छा !?? रघुनाथ चाय लेने के लिए छोट पड़ा । “इघू चाचा !!” सधुवन ले पुकारा--चीजें ज्यादा नहीं लेनी हैं, चाय मैं पिऊँगा नहीं, छः बज गए हैं, जल्दों ही कोई गाड़ी कर छाओ, कपड़े मैं रखे लेता हूँ ।”” बूढ़े रघुनाथ ने दबे स्वर'में पूछा--“मैं सी तो चरलूँगा ।” “हों, हाँ, जल्दी करो, वक्त कम है ।”? चाय का प्याला युवक मालिक के सामने सेज पर रखकर रघुनाथ ने कहा--तुस पियो, मे दूस मिनट में सब ठीक किए लेता हूँ ।”” জীব আম घंटे ॐ वाद्‌ म्ुवन की गाढ़ी स्ठेशन को ओर चल पढ़ी | |.




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