शकुन्तला उपाख्यान | Shakuntla Upaakhyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
89
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
निवाज कवि -Nivas Kavi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शकुन्तला | १३ |
बेव्धौ जाय मधुर च्रधरन पर ५.
ससकि हाथ লন हो दरयो ।
उड़ि अर्ति गयो फ्रेरि फिरि आयो ४
“ शुकुन्तला ह्वां ते टरि आई ।
पोषे भ्रमर लगो टुखदाई ॥
शकुन्तला पुनि जित जित डोले।
तिति तित स्बमर गुंंजरत बोले ॥
राजा निरखत सन अनुरद्यो । `
मन मन मधघुकरसो भ्रस्कद्यो॥ ४१॥
घनाक्षरी छन्द । पा
ओटठन सम्रोप आन गंंजतओ सड़रात मानो बतकदो को |
। लगावत लगन हो | चंचल दरमनि को पलनि करो छोमित |
| ं्श्रो फिरश्ानि कर कपोल फलकनद्ौ+ प्यारो सस- |
। कनि मद्रावति करति तुम उड़ि उड़ि बैठत पियत अधरन |
हो। दुरि दुरि टूरि हो ते देखत खड रहत मनो हम कौने |
काज মন্দ ন্তল धन्य हो ॥ ४५॥
चौपाई ।
शकुन्तला केतो कछ कर।
. खँग तें सधुप न टाखों टरे #
. बन में सघकर बहुत सलाद ॥
शकुन्तला यह टेर सुनाई ४
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