दिवाकर रश्मियाँ | Diwakar Rashmiyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
282
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)_ ] 1 १६ |
से महापुरुष का जन्म होता है | तप के प्रताप से ही वह अलौ-
किक क्रत्य करके दिखलाते हैं ।
८२२)
प्राचीन उदाहरण सेकडो की दही नही, सहस्रौ को
संख्या में मौजूद है । पर तपस्या के प्रभाव को आज भी प्रत्यक्ष
देखा जा सकता ह । कलकत्ता ओर खरे स्थानोमे गानीजी
ने अपने जीवन में कई बार उपवास किये । उन्होने भोजन
त्याग दिया । उसके प्रभाव से कठोर से कठोर और पापी से
पायी मनुप्यो के हृदय भी बदल गये! उन्हे भी तपस्या के
सामने झुकना पडा ।
( १३ )
स्वेच्छापूर्वेक, पारमा्थिक दृष्टि से कष्टो को सहन कर
लेना तप है । तप का बहिष्कार करने का मतलब यह होगा कि
जब कोई कष्ट आये तो उसे स्वेच्छा पूर्वक सहन न किया जाय 1
सहन न करने मात्र से कष्टो का आना तो रुक नही जायगा,
तप को त्याग देने से सहन करने की शक्ति अवश्य नष्ट ही
जायगी । एेसी स्थिति में जीवन कितना क्लेशमय आर दीनता-
मय ही जायगा, यह् कल्पना ही वद्य भयावह है 1
( १९४ )
भगवान् ने उपवास की तपस्या को महत्त्व देने के लिए
बाह्य तपो में अनशन तप को सब से पहले गिना है । गहस्थो
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