दिवाकर रश्मियाँ | Diwakar Rashmiyan

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Diwakar Rashmiyan by श्री अशोक मुनि जी महाराज Shri Ashok Muni Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_ ] 1 १६ | से महापुरुष का जन्म होता है | तप के प्रताप से ही वह अलौ- किक क्रत्य करके दिखलाते हैं । ८२२) प्राचीन उदाहरण सेकडो की दही नही, सहस्रौ को संख्या में मौजूद है । पर तपस्या के प्रभाव को आज भी प्रत्यक्ष देखा जा सकता ह । कलकत्ता ओर खरे स्थानोमे गानीजी ने अपने जीवन में कई बार उपवास किये । उन्होने भोजन त्याग दिया । उसके प्रभाव से कठोर से कठोर और पापी से पायी मनुप्यो के हृदय भी बदल गये! उन्हे भी तपस्या के सामने झुकना पडा । ( १३ ) स्वेच्छापूर्वेक, पारमा्थिक दृष्टि से कष्टो को सहन कर लेना तप है । तप का बहिष्कार करने का मतलब यह होगा कि जब कोई कष्ट आये तो उसे स्वेच्छा पूर्वक सहन न किया जाय 1 सहन न करने मात्र से कष्टो का आना तो रुक नही जायगा, तप को त्याग देने से सहन करने की शक्ति अवश्य नष्ट ही जायगी । एेसी स्थिति में जीवन कितना क्लेशमय आर दीनता- मय ही जायगा, यह्‌ कल्पना ही वद्य भयावह है 1 ( १९४ ) भगवान्‌ ने उपवास की तपस्या को महत्त्व देने के लिए बाह्य तपो में अनशन तप को सब से पहले गिना है । गहस्थो




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