व्याख्याप्रज्ञाप्तिसूत्र भगवती सूत्र | Vyakhya Prajnapti Sutra Part 1 (1982) Ac 5847

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : व्याख्याप्रज्ञाप्तिसूत्र भगवती सूत्र  - Vyakhya Prajnapti Sutra Part 1 (1982) Ac 5847

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गुरु जोरावरमलजी महराज - Guru Joravarmalji Maharaj

Add Infomation AboutGuru Joravarmalji Maharaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सम्पादकीय सगवतीसूत्र : एकादशांगी का उत्तमांग जैन-भागम-साहित्य मे समस्त जैनसिद्धान्तो के मूल स्रोत बारह अगशास्त्र माने जाते है ( जो 'द्वादशागी' के ताम से अतीब प्रचलित है। इन बारह अंगशास्त्रो मे 'दुष्टिवाद' नामकं श्रन्तिम अगणास्व विच्छिन्न हो जाने के कारण प्रब जैनसाहित्य के भडार मे एकादश अगशस्तर ही वतंमान मे उपलग्ध है । ये अग एकादशागी' प्रणवा 'गणिपिटक' के नाम से विश्वुत हैं । जो भी हो, बत॑मान काल में उपलब्ध ग्यारह अग्रशास्त्रों मे भगवती प्रधवा व्याख्याप्रशप्ति' सूत्र जैन श्रागमो का उत्तमाग माना जाता है। एक तरह से समस्त उपलब्ध प्रागमों में भगवती सूत्र सर्वोच्चस्थानीय एव विशालकाय शास्त्र है। द्वादशागी में व्याड्याप्रश्ञप्ति पत्तम अगशास्त्र है, जो गणधर सुधर्मास्वामी द्वारा ग्रथित है । नामकरण प्रौर महसा वीतराग सर्वज्ञ प्रभु की वाणी प्रदूभुत शाननिधि से परिपूर्ण है। जिस शास्त्रराज मे भ्रनम्तलम्धिनिधान गणधर गुरु श्रीइन्द्रभूति गौतम तथा प्रसगवश পন্য श्रमणों आदि द्वारा पूछे गए ३६,००० प्रश्नों का श्रमण शिरोमणि भगवान महावीर के श्रीमुख से दिये गए उत्तरो का सकलन-संग्रह है, उसके प्रति जनमासन मे श्रढा- भक्ति श्रौर पूज्यता होना स्वाभाविक है! वीतरागप्रभु की वाणी मे समग्र जीवन कौ पावन एवं परिवर्तित करने का भद्भूत सामथ्यं है, वह एक प्रकार से भागवतौ शक्ति है, इसी कारण जब भी व्याध्याप्रशप्ति का वाचन होता है तब गणधर भगवान्‌ श्रीगौतमस्वामी को सम्बोधित करके जिनेश्वर भगवान्‌ महावीर प्रभु द्वारा व्यक्त किये गए उद्यारो को सुनते ही भावुक भक्तो का मत-मयूर श्रद्धा-भक्ति से गदगद होकर नाच उठता है। श्रद्धानु भक्तमण इस शास्त्र के श्रवण को जीवन का भ्रपूर्व भ्रलभ्य लाभ मानते है। फलत प्रन्य अगो की श्रपेक्षा विशाल एव भरधिक पूज्य होने के कारण व्याख्याप्रशप्ति के पूव॑ भगवती” विशेषण प्रयुक्त होने लगा भोर शताधिक वर्षों से तो “भगवती शब्द विशेषण न रह कर स्वतत्र नाम हो गया है। वर्तमान मे व्याख्याप्रशप्ति की भरपेक्षा भगवती! ताम ही प्रधिक प्रचलित है । वतंमान व्याध्याप्रशप्ति' का प्रातभाषा 'विधाहपण्णत्ति' नाम है। कही-कही इसका नाम 'विवाहपण्णत्ति' था 'विबाहपण्णत्ति' भी मिलता है। किन्तु वृत्तिकार पश्राच्षायंश्री प्रभयदेव सूरि ने (वियाह- पण्णत्ति' नाम को ही प्रामाणिक एवं प्रतिष्ठित माना है। इसी के तीन सस्कृतरूपान्तर मान कर इनका भिन्न-भिन्न प्रकार से भ्रथे किया है--- ध्याख्याप्रशप्ति--गौतमादि शिष्यों को उनके द्वारा पूछे गए प्रश्नो के उच्तर मे भगवान्‌ महावीर के विविध प्रकार ते कथन का समग्रतया विशद (प्रकृष्ट) निरूपण जिस ग्रन्थ मे हो। प्रथवा जिस शास्त्र मे विविधरूप से भगवान्‌ के कथत का प्रश्ञापन--प्ररूपण किया गया हो । व्याध्या-प्रशाप्ति--व्याख्या करने की प्रज्ञा (बुद्धिकुशलता) से प्राप्त होने बाला पश्रथवा व्याख्या करने मे प्रज्ञ (पटु) भगवान्‌ से मणधर को जिस ग्रन्थ द्वारा ज्ञान की प्राप्ति हो, बह श्रुतविशेष । [१५ ]




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now