सभ्यता की कहानी भारत और उसके पडोसी - देश | Sabhyata Ki Kahani Bharat Aur Uske Padosi Desh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १४ भारतीय संसृति के मूलाधार १. संस्कृति के नाटक को प्रथम अंक भारत की पुतः खोज; मानचित्र पर एक दृष्टि; जलवायु का प्रभाव । ह तिदाप के किसी आधुनिक विद्यार्थी के लिए इससे बढ़कर लूज्जा की और कोई बात नहीं हो सकती कि भारत के बारे में उसका ज्ञान बहुत सीमित और अपर्याप्त है। इस विरा प्रायद्वीप का क्षेफल लगभग २० छाख वर्ग मील है, तथा यह अमेरिका के दो तिहाई भाग के वरावर और अपने शासक ग्रेट ब्रिटेन से बीस गुना बड़ा है ।' इसकी जन संख्या ३२,००,००,००० के लगभग है, जो कि उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका की सम्मिलित जनसंख्या से भी अधिक है और संसार की कुल जनसंख्या के पांचवें हिस्से के चरावर है। २९०० वर्ष ई० पू० या उससे भी अधिक पहले मोहनजोदाड़ो से लेकर गांधी, रमण और टैगोर तक सभ्यता और विकास का एक क्मवद्ध सिलसिला यहाँ बराबर चला आया है--अंधावुंध और यहां तक कि बर्बर किस्म की मृतिंपुजा से लेकर अत्यंत सूक्ष्म और गढ़ रहस्पवाद के लगभग सभी स्तरों से पूर्ण, जहाँ ईसा से भी आठ शताब्दी पूर्व “उपनिषदों से छेकर ईसा से आठ शताब्दी वाद शंकर तक दाशिनिकों ने एक ही अद्वेतवादी विचारधारा को अनेक स्वरूपों में विकसित किया है; जहां के वंज्ञानिकों ने तीन हजार वर्ष पूर्व खगोलशास्त्र का विकास किया था और हमारे युग में भी जिन्हनि नोबुल पुरस्कार प्राप्त किये हैँ; जिसके गाँवों में अनादि काल से एक लोकतांत्रिक विधान का प्रयोग होता र्हा है मौर जहाँ अशोक ओर अकवर के समान बुद्धिमान और प्रजा प्रेमी शासक हो चुके हैं; जहाँ के चारण होमर द्वारा रचित महाकाव्यों के समान ही प्राचीन महाकाव्यों का गायन करते रहे हैं और जहां के कवियों की रचनाओं को आज हमारे युग में संसारव्यापी लोकश्रियता आप्त दो रही है; जहाँ के कलाकारों ने तिव्वत से लेकर श्रीलंका तक और कम्वोडिया से छेकर जावा तक हिन्दू देवताओं के लिए भव्य भन्दिरों की रचना की है और मुगल बादशा ओौर वेगमों के छिए स्वगि सुंदर महलो की रचना की है--यह है भारत, जिसकी जानकारी अब पश्चिम को धीरे-बीरे प्राप्त हो रही है, उस पश्चिम को नो अभी कल तक यही साने वं था कि सभ्यता का केवल यूरोप से ही सम्बन्ध है ।' * यह पुस्तक भारत कौ स्वाघीनता प्राप्त होने के वहुत पहले लिखी गई थी । * भेगस्थनोज़ के समय से लेकर, जिसने लगभग ३०२ ई० धू० में यूनान को भारत का परिचय कराया था, अठारहवीं शताब्दी तक भारत यरोप के लिए एक आइचय॑ और रहस्य को वस्तु था। मार्को पोलो ने (सन्‌ १९५५४-१३९४) भारत की पश्चिमी सीमा का एक बहते ही अस्पष्ट चित्र उपस्थित किया, कोलम्बस भारत को खोजने के प्रयास सें गलती से अमेरिका जा पहुंचा, वास्को-डी-गामा ने इसको पुनः खोजने के प्रयास




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