भागवती कथा खंड 36 | Bhagwati Katha Khand 36
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महाराज परोक्षित का श्रोकृष्ण-चरित सम्बन्धी प्रदव १३
मानता है? मनुष्य-स्वमाव है, वह् मपने ही उपकार करने वाते
का अधिक कऋणी रहता है ।”
इस पर महाराज बोले-/मगवन् | मेरे ऊपर भी भगवान्
के बुछ कम उपकार थोडे ही हैं। मेरे तो वे जीवनदाता, मेरी
माता के भयन्राता तथा सर्वस्व हो हैं। गुरुपुन्त भश्वत्यामा
ब्रह्मा छोडकर माता के उदर में ही मुझे मारकर फोरबनाटद
वश्च बे बीज मुझ परोक्षित वो नष्ट बर देना घाएे के इन
छोड भो दिया ५ मेरी देह दग्ध भी होने लगो ¦ छन्न
दाक सागर देवकीनन्दन मेरीमां वेद्य चन्दन
लेबर घुम गये ओर उसे घुमाते हुए मेरी रद অনু দত ভিড
নানা होते प* भी भाई बन गये । अपने मर्ज আ इज के হল
में रहन में भी उन्होने सकोच नही डिस्य ই কল
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