भागवती कथा खंड 36 | Bhagwati Katha Khand 36

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Bhagwati Katha Khand 36 by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महाराज परोक्षित का श्रोकृष्ण-चरित सम्बन्धी प्रदव १३ मानता है? मनुष्य-स्वमाव है, वह्‌ मपने ही उपकार करने वाते का अधिक कऋणी रहता है ।” इस पर महाराज बोले-/मगवन्‌ | मेरे ऊपर भी भगवान्‌ के बुछ कम उपकार थोडे ही हैं। मेरे तो वे जीवनदाता, मेरी माता के भयन्राता तथा सर्वस्व हो हैं। गुरुपुन्त भश्वत्यामा ब्रह्मा छोडकर माता के उदर में ही मुझे मारकर फोरबनाटद वश्च बे बीज मुझ परोक्षित वो नष्ट बर देना घाएे के इन छोड भो दिया ५ मेरी देह दग्ध भी होने लगो ¦ छन्न दाक सागर देवकीनन्दन मेरीमां वेद्य चन्दन लेबर घुम गये ओर उसे घुमाते हुए मेरी रद অনু দত ভিড নানা होते प* भी भाई बन गये । अपने मर्ज আ इज के হল में रहन में भी उन्होने सकोच नही डिस्य ই কল মী । সিহা शरीस्तो उन्दी গাহি হলি চা জী देने से मेरा नाम ' विष्णुरात” पता # भगवद्ू ।! सृष्टि करन*वाले दा नदन => प्रलय करने वत्ति হর শী ৪ আলাল রর करण मे भा ग्रस्तर्याम्ती स्परे दरद्‌ > चाले काल वनवे শী জী তল পিক - द ष्टिवाले मात्मनानौ অন তল ই কাজি ১৯৯ জীভ सना करते है और वाह्म ट्रेंड পল লাল হর্রাণীল विपयहूप से उन्ही का हिन्दन +बत 5 হট ই আছে মুক্তি মা উর ০৯ म ' कं जा আনান न नकर আঁ সি হল भी वे ही हैं, লিসা ~ग. চর ५ हैं, मृत्यु गोव ही ईच = ~ किसी की सत्ता नहीं ख পাইল হু >




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