बापू की झाँकियाँ | Bapu ki Jhankiyan

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Bapu ki Jhankiyan by दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर - Dattatrey Balkrashn Kalelkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शिक्षकका काम करके आसके अन्दरूनी वायुमण्डलको मुझे समझना था। रविबाबुने बढ़ी अुदारतासे मुझे वह मौका दिया था। वहीं पर बापूके फिनिक्स आश्रमके लोग भी मेहमानके तौर पर रहते थे। बापू जब्र दक्षिण अफ्रीकांसे विलछायत गये, तब ओन्होंने अपने आभ्रम- वासियोंको श्री अंड्रयूज़के पास भेजा था। श्री अड्घृुज़ने जिन्हें कुछ दिन महास्मा मुंशीरामके गुरुकुलमें हरिद्वारमें रखा और बादमें शान्तिनिकेतनमें । अखबार पढ़नेके कारण में दक्षिण अफ्रीकाका अपने लोगोंका जअितिहास जानता ही था । मेरे अकं स्नेहीके द्वारा गाधीजीके अप्रीकाफे आश्रमके बारेमें भी सुना था। सम्भव है अआुन्हींके द्वारा आश्रमवासियेने भी मेरा नाम सुना हो । रान्तिनिकेतनमे जाते ही मे सिस पिनिक्घ पार्टमिं करीव करीब शरीक हो गया। জুন ओर शामकी प्रथनाय अुन्हीके साथ करने लगा । शामका खाना भी वहीं पर खाने लगा । ये आश्रमवासी सुबह अुठकर अक घण्टा मेहनत मजदूरी करते थे। शान्तिनिकेतनवालेंनि জিন্ই ओक काम सौप दिया था। श्लान्तिनिकेतनकी भूमिके पास अक तथ्या थी आर पा ही ओक टीला था। जिस टीलेको खोदकर तलेयाका गढ़द्दा भरनेका यह काम था । हम दस बीस आदमी यदि रोज अक घण्ट काम करते रहते, तो न जाने कितना समय असे पूरा करनेमें लग जाता । लेकिन हमें तो निष्काम कर्म करना था। रोज बड़े आत्साहसे हम अपना काम करते जाते थे । मि० पियसन भी हमारे साथ आते थे । जब बापू शान्तिनिकेतन आये, (अने अनेका सारा बयान में अलग दूँगा।) तो रातको देर तक हम बातें करते रहे सुबह भुठकर प्राथनाके बाद हम मजदूरीके लिओे गये। वहाँसे लोटकर आये तो क्था देखते हैं! हम लोगोंका नाइता --- फल आदि सब काटकर --- अल्ग अलग थालियोंमें तेयार रखा है । हम सबके सब काम पर गये थे, तब माता-जैसी यह सब मेहनत किसने की! मेंने बापुसे पूछा ( आुन दिनों में अनसे अंग्रेजीमें ही बोलता था )--' यह खव किया किसने १ वे बोले -- क्यों, मेने किया है । › मेने सकोचसे कहा --* आपने क्यों किया ! मुसे अच्छा नहीं लगता कि आप सब तेयारी करं, ओर हम गैठे खाय | রত




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