आदर्श साधु | Adrash Sadhu

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Adrash Sadhu by श्री वंसी - Sri Vansi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आदर्श साधु १९ বি सत्ता, चांदी, हीरा, माणिक, মীরী, গপাহ জু जिसकी निस्पही ओर मिमाद्दी आत्मा को व समान, पत्थर कं तस्य भासं | फ्यों कि, जिस सम्पत्ति से अनन्तकाल तक आत्मा को तृष्ति नहों हुई जिस भायादी ससद्धि को प्राप्त करते-ऋकरते सर्दय दोनता हो रहो- उसे जद पर-वस्तुं मानकर फक दी | उस पर भाषत्यांगी को मोह कया > न লহ श्चप्सरा या रजा दोनो, (ज़सकी दृष्टि में केंचल काठ की पुतत्ली है । अपि या सर्प का स्पर्श स्वप्त में भी जेंसे न करे उसी प्रदार भीग জী লাভা ক্ষঙ্গা ন হছ্ছাঁ | यट तो कस्चन और कामियी के त्यागी लीवयागमोद कक शबत्त्रों से विंधे नहीं। सम्राट फा सपार | धार घहापती का भो चन्रवर्ती एप কুল হাতল समख क सलार स्या स्यत्तन्य मालिक, पेही प्रश्रय खा।ध। पे) সদ রী




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