आश्चर्य - घटना | Ashcharya Ghatana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा परिचछेद । है रमेश इसपर कुछ न बोला | वह सोचने लगा झभी समय बहुत है देखा जायगा |? रमेश के ब्याह का जो दिन नियत हुआ था उसके शगले साल में विचाह का लगन न था । उसने सीधा किसी तरह यह दिन टल जाय तो बस उसके ब्याह का समय पक साले श्ागे बढ़ जायगा । खिर रमेश के मन की सोची हुई पक बात भी ने हुई | उसके ब्याह का मुहते किसी तरह न टला । शादी के लिए जलपथ से जाने का विचार हुआ । ए्यामपुर घजमोदन के गाँव से दर था । नदी पार कर जाने में क्रम से कम तीन दिन लगेंगे यह सोचकर घ्रजमोहन ने देवी धटना के लिए पूरा छोड़कर एक सप्ताह पूर्व ही शुभ दिन में यात्रा को । वायु श्रनुकूल था । इससे श्यामपुर पहुँचनेमें पूरे तीन दिन भी न लगे । ब्याह के अब भी चार दिन बाकी है । जघमोहन बाबू को इच्छा दो चार दिन पहले हो वहाँ श्राने की थी । श्यामपुर में उनकी भावी समधिन दुप्ख से समय बिता रही थी । बहुत दिनों से उनकी इच्छा थी कि थे उसे ब्पने यहाँ लाकर सुखपूर्वक रक्‍खें शोर इस उपकार से थे अपने स्वर्गीय मित्र ईशान बावू के ऋण का परिशोधघ कर । काई विशेष सम्बन्ध न रहने के कारण उनकी स्त्री से को यह पूछने का साहस न होता था श्रौर न वे थिना सम्बन्ध के उसे झपने यहाँ ले जाना उचित समक्रते थे । रब उन्होंने इस पिताह के उपलब्ष में अपनी समधिन के समभका बुझा




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