श्री भागवत दर्शन खंड 32 | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 32 ]

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Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 32 ] by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घन्ददेव का पनुचित काय ११ ने ग्रह महापाप हो नहीं किया है, हम सव का घोर प्रपमान भो किया है। हम इसे शिसी प्रवार भो क्षमा ने करेंगे। हम घपने बाहुबल से उसे पराम्त कर भगवती तार ঘী लाखेंगे। श्राप चिन्ता न करें, हम प्रमी घुद्ध फी तेयारो करते हैं।” यह पहकर देवराज ने समस्त देवताशों को युद्ध के लिये तेयार हो जाने फी झाज्ञा दी । ॥ इधर, जब सुरग्रु बृहस्पति के प्रतिढन्र प्रसुर-एर शु्राचाय ने यह समाचार सुना, तव उनके हर्प का ठित्राना नहीं रहा। (प्रपने शत्रु को हानि सुनकर चित्त में एक प्रकार वा संतोष- सा होता है श्रौर हानि करने वाले की भोर स्वामाविक भनुराम हो जाता है। ) शुक्राचाय दोड़े-दोड़े चन्द्रमा फे पास गये धौर -बोले--“देखो, चन्द्रदेव ! तुमने जो भी उचित-प्रनुचित किया है, उस पर भट्े रहना। यृहृस्पति की बन्दरघुडकी मे, मत লালা) इन देवताप्रों को तो तुम जानते हो हो ! ये तो सबके सब नपुंसक हैं। भसुर जब चाहते हैं, इन्हे मार भगाते हैं। सदा इनकी परा- जय ही होती है। ये सदा पराजित होकर विष्णु का भाश्वय ग्रहण करते हैं। बृहस्पति तुम्हें कसी प्रकार जीत नहीं सकते । “सतुम युद्ध से तनिक भी मत डरना। हम तुम्हारे साथ हैं। मेरे समस्त प्रसुर-रिष्य प्राणों कौ वाजी लगाकर तुम्हारे लिए रक चहाने को तत्पर हैं।” यह सुनकर चन्द्रमा का साहस और भी प्धिक बढ गया पहिले तो वह डर गया था, किन्तु, शुक्राघार्य का श्राश्यसन पाकर उसने कहा--मगवनु ! यदि श्राप मेरे साथ हैं, तो में कमी भी किसी से डरने वाला नही 1 एक नहीं, हजार बृहस्पति भो चाहे क्यों न भा जाय॑, में तारा को कभी दे नहों' सकता। झाप “मेरे ऊपर कृपा बनाये रखें। देवता युद्ध की तेयारियाँकर चुके বসি *




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