मुक्ति के पथ पर | Mukhati Ke Pathpar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : मुक्ति के पथ पर  - Mukhati Ke Pathpar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about केशरी चंद सेठिया - Keshari Chand Sethiya

Add Infomation AboutKeshari Chand Sethiya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
{ भ] विचार बता दिये है । जैन शासनमे सब मनृष्य समान है गुणोंका ही मूल्य हैँ, जातिका कोई मूल्य नही, यह बात भगवान महांवी रने अपने श्रीखुखसे बताई है । अपने समवसरणमें गदहे और कुत्ते तक आते थे ऐस्ता बताकर भी बताई है, तो भी आजका जड समाज অন্ত প্লান न समझ कर और मनुष्य-मनुष्यमे जातिगत उच्चता व नोचताकों भान कर भगवान महावीरका घोर अपमान कर रहा है । हमारे जैन मूनि आचाये व स्थाविरोको भी यह बात नड़ी सूक्षत्री वो बिचारे प्ज्ञानी समाजकी क्या बात? परन्तु लेखकके समान क्रान्तिमय विचारवाले युवक समांजमें पक रह है जिससे आशा पड़ती है कि अब ज्यादा समय तक भगेवानकी वाणीकी अवहेलना न हो सकेगी । 'धर्मकी रेखा/की कहानीमे राजा गर्दमिल्‍लने साध्वी सरस्वततीका अपहरण किया था और उसे उसके भाई आचाय॑ कारूकने केवल अपने बलस ही मुक्त कर फिर साध्वी सघमें प्रवेश कराया था। इस वृतात का लेकर धमकी रेखा खीची गई हं) জাজকক্ষা লব यद्यपि सुनिश्चित नहीं जान पडता तो भी महा- वीर निर्वाणकी तीसरी चौथी शतान्दीमे उसकी विद्यमानता লাললম प्राय बाधा नही छगती । सरस्वत्तीका अपहरण बताता हैँ कि राजा खाक गध ही बनं गये थ अन्यधा सन्यासिनीका मपहरण कंसे ही सके ? राजा तो गर्ध बच जाय इसमे कोई अचरजकी बात नही परन्तु प्रजाकी जनता और जिसे पर जैनसघकी व्यवस्थाकां सारा भार है चह अमभ- सधं भी उत्त संमंय जरूर धमं पराडमुख ही गया था ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now