जैन प्रतिमाविज्ञान | Jain Pratima Vigyan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : जैन प्रतिमाविज्ञान  - Jain Pratima Vigyan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी - Marutinandan Prasad Tiwari

Add Infomation AboutMarutinandan Prasad Tiwari

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
३ [ बेन प्रतिसाधितात माता-पिता, अह-दिक्पालों, नवप्रहों, एवं अन्य देवों के प्रतिमा-निरूषण से सम्बन्धित उल्लेख और उनकी पदाथंगत्त अभिव्यक्ति भी सर्वप्रथम इसी क्षेत्र में हुई ।* उत्तर भारत का क्षेत्र परम्परा-विद्ध और परम्परा में अप्राप्य प्रकार के चित्रणों की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था ।* देवगढ़ एवं खजुराहो की द्वितीयाँ, जितीर्थीं जिन मूर्तियाँ, कुछ जिन भर्तियों में परम्परा सम्मत यक्ष-यक्षियों की अनुपत्यिति,* देवगढ़ एवं खजुराहो की बाहुबली भूतियों में जित मूर्तियों के समान अष्ट-प्रातिहायोँ एवं यक्ष-यक्षी का अंकन, देवगढ़ की तरितीर्थी जिन मू्तियों भं जिनो के साथ बाहुबली, सरस्वती एवं भरत चक्रवर्ती का अंकन दस कोरि के करु प्रमुख उदाहरण ह । कु स्थलों (जालोर एवं कुम्भारिया) की मूतियो मे चक्गश्वरी एवं अम्बिका यक्षियों ओर सर्वानुभूति यक के मस्तक पर सर्पंफण प्रदर्शित हैं। कुम्भारिया, विभजवसही, तारंगा, उुणवसही जादि एवेताम्बर स्थलों पर ऐसे कई देवों की मूर्तियाँ हैं जिनके उल्लेल किसी जैन श्रन्थ में नहीं प्राप्त होते । जन हिल्प में एकरसता के परिहार के लिए, स्थापत्य के विशाल आयामों को तदमुरूप शिल्पगत वेविध्य से संयोजित करने के लिए एवं अन्य धर्मावलम्बियों को आकर्षित करने के छिए अन्य सम्प्रदायों के कुछ देवों को भी विभिन्न स्थलों पर भकक्लित किया गया । खञ्जुराहो का पाष्वंनाथ जैन मन्दिर इसका एक प्रमुख उदाहरण है । मन्दिर के मण्डोवर्‌ पर ब्रह्मा, विष्णु, शिव, राम एबं बढूराम आदि की स्वतन्त्र एवं शक्तियों के साथ आलिगन मू्तियाँ है 1* मथुरा की एक अम्बिका मति मे बलराम, कृष्ण, कुवेर एवं गणेश का, मथुरा एवं देवगढ़ की नेमि मूर्तियों में बलर।म-क्ृष्ण का, विमलवसही की एक रोहिणी मूर्ति में शिव और गणेश का, ओसिया की देवकुलिकाओं ओर कुम्मारिया के नेमिनाथ मन्दिर पर गणेश का, विमलवसहों और लृणवसही में कृष्ण के जीवनहृ शमों का एवं विमलवसही मे षोढश-भुज नरसिह्‌ का अक्रन ऐसे कुछ अन्य उदाहरण हैँ । जटामुकुट से शोभित वृषभवाहना देवी का निरूपण उेताम्बर स्थो पर विशेष छोकप्रिय था । देवी की दो भुजाओं मे सपं एवं त्रिशूक हैं। देवी का लाक्षणिक स्वहूप पूर्णतः हिन्दू शिवा से प्रमावित है ।* कुछ श्वेताम्बर स्थलों पर ्र्ञपि महाविद्या की एक भुजा में कुक्कुट प्रदधित है, ओ हिन्दू कौमारी का प्रभाव है।” कुछ उदाहरणों में गौरी महा- विद्या का वाहन मोधा के स्थान पर वृषभ है । यष हिन्दू माहेश्वरी का प्रभाव है।* राज्य संग्रहालय, लखनऊ (६६९.२२५, जी ३१२) की दो अम््रिका मूर्तियों में देवी के हाथों में दप॑ण, तरिशुरू-बष्ठा और पुस्तक प्रदर्शित हैं, जो उम्रा और शिवा का प्रभाव है ।* १ दक्षिण भारत के मूर्ति अवशेषों में विद्याओं, २४ यक्षियों, आयागपट, जीवन्तस्वामी महावीर, जैन युगल एवं जिनों के माता-पिता की मूर्तियाँ नहीं हैं । २ उत्तर भारत में हीने बाले परिवतंनों से दक्षिण भारत के कछाकार अपरिचित थे । ३ गुजरात-राजस्थान की जिन मूर्तियों में समी जिनों के साथ सर्वोन्ुभूति एवं अस्व्रिका निहूपित हैं जो जैन परम्परा में नेमि के यक्ष-यक्षी है । षम एवं पाश्वं की कुछ मूत्तियों में पारम्परिक यक्ष-यक्षी भी अंकित हैं । ४ ब्रुन, क्छाज़, दि फिगर ओव दि ट लोमर रिरीफ्स आन दि पाद्वंनाथ टेम्य्‌ एेठ खजुराहो , आखायं भीनरिजय- बल्लम सूरि स्मारक प्रन्ने, बम्बई, १९५६, पृ० ७-३५ ५ उल्लेखनीय है कि गणेश की लाक्षणिक विशेषताएं सर्वप्रथम १४१२ ई० के अजन प्रग्य आचारदितकर में ही निह- पित हुईं । ६ राब, टी० ए० गोपीताथ, एलिमेप्ट्स आँब हिस्बू आइकानोग्राफी, खण्ड १, माग २, वाराणसी, १९७६१ (पु० मु०), १० ३६६ ও बही, पृ० ३८७-८८ ८ अही, ¶० ३६६, ३८७ ९ बह, ० ३६०, ३६६. ३८७




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now