जैन - जगत की महिलाएँ | Jain Jagat Ki Mahilayan  

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जैन-जगत्‌ की महिलाएँ (३ यता के उपासक भौर पोपक बन गये | तब हमारा घमं रहता भी तो कैसे १ क्योकि जरत्‌ से गुलामों का कोई धम और कर्म नहीं होता | नारी शिक्षिता हो यदि नारी-शिक्षा में किसी प्रकार का भी कोई दोप कभी होता, तो क्‍यों भगवान्‌ ऋषमस देव स्वय अपनी पुत्री त्राह्मी को पढा-छिखाकर पढिता बनाने ? नारी शिक्षा के विरोधियों को इस उदाहरण से बोध- पाठ सीखना चाहिये । परन्तु है] आज की नारी-शिक्षा के हम भूछ कर भी हामी नहीं; वरन्‌ हम तो उनमें उस शिक्षा का प्रचार और प्रसार चाहते है, कि जिससे उनका सन उदार ओर संसत हो जावे! उनकी बुद्धि का पूरा-पुर/ विकास हो पावे और वे ख्यावखम्बी बन सके | यदि नारिया ऐसी हो गई, तो दुनिया की फिर कोई भी महान्‌ शक्ति हमें दबा नहीं सकती । अत' यह सिद्ध हुआ; कि नारियों की सच्ची शिक्षा ही में राष्ट्र के जीवन उन्नति और सरक्षण के चीन छिपे रहते हैं । तब कया हमें भी अपनी सम्पूर्ण शक्तियों सेइस ओर न जुट पडना चाहिए १ ब्राह्मी कौ दीक्षा समय आया ऋषभदेवजी ने दीक्षा घारण कर भू-मण्डछ पर विहार किया। तप और संयम के द्वारा उन्होंने अपने सम्पूर्ण घन- घाती कर्मो का सवै-नाश करके दिग्य प्कैवल्य-ज्ञान' प्राप्न करिया । विचरण करते-करते बे एक वार उसी अयोध्यापुरी मेँ पवारे । उने पावन उपदेश को सुनने के छिए ससी नगरवासी छोय गये । ब्राह्मी ने भी उसमे भाग छिथा । उस उपदेश का असर उनके हृदय पर इतना गहरा पड़ा, कि वे सी दीक्षा लेने पर उतारू हो गई' । उसके




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