हड़ताल | Hadtal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.64 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दृश्य १ 1. कै हड़ताल १७ हमेशा भागूँगा । ऐंथ्वनी--हम उनके पैरों नहीं पड़ सकते । सब उनकी तरफ़ ताकने लगते हैं वाइल्डर--पैरों कौन पड़ना चाहता है ? एंथ्बनी उसकी तरफ़ ताकता है मैं सोच समभ कर काम करना चाहता हूँ । जब मजदूरों ने राबर्ट को दिसम्बर में बोर्ड के पास भेजा था तबं श्रवसर था । हमें उसको मिला लेना चाहिए था इसके बदले सभापति ने-- ऐंथ्वनी के सामने भ्राँखें तीची करके हमने उसे फिड़क दिया । भ्रगर उस वक्त ज़रा चतुराई से काम लेते तो सब हमारे पंजे में झा जाते । न ऐंथ्वनी--समभौता नहीं हो सकता कर है वाइल्डर--यही तो बात हूं । यह हड़ताल श्रक्तुबर से भ्रब तक चली झा रही है भ्रौर जहाँ तक मैं समभता हूँ शायद छः महीने भ्रौर चले । तब तक तो हम चौपट ही हो जायेंगे । भ्रगर श्राँसु पोंछने की कोई बात है तो यही कि मज़- दूर लोग भ्रौर भी चौपट हो जायँगे । एडगार-- अन्डरवुड से क्यों फ्रेक श्राजकल उनकी श्रसली हालत क्याह? अन्डरवृड-- उदासीन भाव से बहुत खराब वाइल्डर--लेकिन यह कौन समभ सकता थां कि वे इतने दिनों तक॑ बिना सहायता के डटे रहेंगे .. अन्डरवुड--जो उन्हें जानते हैं वे समझे हुए थे ।. वाइल्डर--मैं हाथ मारकर कहता हूँ कि यहाँ उन्हें कोई नहीं जानता ? भ्रच्छा टिन का क्या रंग है ? दिन दिन तेज़ होता जाता है । जब हमारा कारखाना चलने भी लगेगा तो हमें बाज़ार भाव के ऊपर चुकाएं हुए माल को. लेना पड़ेगा । वेंकलिन--इसके बारे में श्राप क्या कहते हैं सभापति महोदय ? ऐंथ्वनी--लाचारी है वाइल्डर--ईश्वर जाने कब तक हम नफ़ा न दे सकेंगे । स्केंटलबरी-- जोर देकर हमें हिस्सेदारों का खयाल रखना चाहिए । सभापति की श्रोर फिर कर. सभापति महोदय हमें हिस्सेदारों का खयाल रच
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