अंतर्राष्ट्रीय संबंध | Antarrashtriya Sambandh
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
588
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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19वी झताब्दी में जापान का आपु्िकीकरण तेजी से हुआ। जापान की आधिक व
ओद्योगिक सफलता ने साप्नाज्यदादी महत्वाकाक्षा को जन्म दिया। 1905 में रूस
को हराने के बाद से जापान में चल्ली अह॒कार निरन्तर बढ़ता गया। वाशिगटन
नौसैनिक सम्मेलन जैसे जवसरों पर पश्चिमी राष्ट्रों ने जापान की इत भ्रान्तिपूर्ण
महत्वाकाक्षाओ को तुष्ट करिया 1 इसके बाद जापान का यह सोचना तर्कसंगत খা
কি सम्रानधर्मी नाजी व फासी ताकतों के साथ गठजोड़ कर बह अपने मसूवे
पूरा कर सकता है। इस प्रकार, जापानी सैन्यबाद ने द्वितीय विद्व युद्ध कौ
जन्म दिया 1
4. साम्यवाद का संकट (८755 ० (णाशाएपंदा)--जापानी सैन्यवाद
को तरह सोवियत सध मे साम्यवाद की स्थापना ने भी अप्रत्याशित ढग से द्वितीय
विद्व युद्ध के विस्फीट के लिए जमीन तैयार की। 1917 के वाद तमात पूंजीवादी
राष्ट्र रूस करन्ति के निर्यात के प्रति बाशकित ये। उनके द्वारा समर्थित सफेद
सैनाओ ने सोवियत संघ में सेनिक हस्तक्षेप का श्रयत्व भी किया । उसके बाद रूस
শু ই रूप में परिभाषित किमा जाता रहा और उसकी चेखवन्दी के प्रयत्न किये
जाते रहे । इम्तण्ड उपा शास मे अनेक लोगो का सोघना या कि यदि माजी जर्मनी
अपनी बिस्तारबादी महत्वाक्षक्षाओ का लक्ष्य रूस को बनाता है तो इसमे उतका
लाम ही है। जर्मती में हिटलर ने जिस दिस तरीके से पने साम्यवादी (दिरोधियों
का सफाया किया, उससे भी यह् आया प्रकट हृष 1 हिटलर कौ उयरपधिता को सहेन
करना और उसके तुप्टीकरण के प्रयत्न सौ सन्दर्भ मे समझ में भाते है ।
दूसरी ओर स्वयं रूस का राजनयिक आचरण सिद्धान्वहीन औौर हुलमुलपंथी
इहा । सोवियत संघ ने अवसरवादी ढंग से नाजी जमेनी के साथ गुष्त समझौता
किया और जव तक स्वयं उस पर हमला नही विया गया, तब तक उसने नाजियों
और फासीयादियों को शत्रु नही समझा | रूस पर हमले के बाद ही राष्ट्रवादी प्रद्ध
में कूद पडने के लिए विदव मर के ऋान््तिकारियों का आह्वान किया गया। निश्चय
ही, इस आचरण ने अस्तर्राप्ट्रीय राजनीति की अस्थिरता को बढाया और विश्व युद्ध
की सम्मद बनाया
गुद्धकालीत राजनयिक सम्मेलन, शान्ति सन्धियाँ,
उनका महत्व एवं संयुक्त राष्ट्र संघ
द्वितीय विश्व युद्ध के विस्फोट के साथ अन्तर्राष्ट्रीय राजतय की प्रक्रिया अस्त-
व्यस्त हो गयी | परन्तु इससे यह समझता गलत होगा कि राजनयिक অহালহা पूणवः
समाप्त हौ गया । युद्ध के दोरान मित्र राष्ट्रो के बोच महत्वपूर्ण परामर्श निरन्तर
चलता रहा और अनेक ऐतिहासिक णजनिक राम्मेलनों का आयोजन क्या जा
सका। इनमे कुछ सम्मेसत ऐतिहासिक महत्व के छिद़ हुए ओर युद्ध संचालन के
अतिरिक्त युद्बोत्तर अन्तर्राप्ट्रोय व्यवस्था के स्वरूप पर भो इनका प्रभाव देखा जा
सकता हूँ। इनमे से प्रमुख सम्मेलव निम्नलिखित हैं :
_* लन्दन सम्मेलन घोषणा (1.070०0 7১০520102, 1941) ---जुन,
1941 ने অন নিহল युद्ध अपने पहले चरण में था, लन््दन में तब ब्रिटेन, कनाडा,
২. ১ दिदौय विश्व पुद्ध के विस्फोट के तात्हालिक और बुनियादी राप्णयों का सबसे सासयस्ित
शयेन ६० एुइ० कार ने हा है ।
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