मणिभद्र : पुष्प - 28 | Manibhadra : Pushpa-28

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नवकार प्रहाप्॑त परण पर ज़िवक॒मार का दृष्टांत लेखक : श्राचार्य श्री विजय इन्दू दिन्‍न सूरीश्वरज्षी महाराज प्यूतं च मास च सुरा च वेश्या, पाप्रद्धि चौर्य परदारसेवा । एतानि सम्तव्यसनानि लोके धोरातिधोरं नरकं नयन्ति ॥। जग्रा सेलना, मासि खाना, शराव पीना, वश्मा मन करना, शिकार करना, प्ररत्री गमन करना, नोरी करना, कूठ बोलना | यह सात व्यसन है । एक बहुत बड़े सेठ का शिव कुमार नाम का लडका ওল में फंसा हुआ था बुरे मित्रों की संग्रति से उसने प्रपना जीवन वहत कलंकित कर लिया । वह्‌ ग्रपने माता-पिता और बढ़ों का कहना भी नही मानता था । माता-पिता को पूछे बिना, घर में से धन चोरी करके अपने ऐसे क्षुब्यसनों में फंसे हुए मित्री को खिलाता। उस प्रकार वह ख़ब धन उतगाता था। पिता ने बहन वार शिक्षा दी । परन्त নত थोक रास्ते पर नहीं आया | पिता की श्रव्र मरने की तंथारी थी। उत्त समय सगे सम्बन्धी रिश्तेदार श्रादि-सब' मिलने के विंग शायर बैठे थे। एसलिए बह लड़का भी झा पहचानने ही थे । श्रपने पिता से , पितातझी प्रतिम समय मेरे छ्वित्र के लिए =+ ~ # 05 কক শি শে চপ न পি द न+ [4 > पु ९५८५ ও =^? লি খু 4 मृ 4 4 চে দশা লা | समा শালা বহি सापा सपने मां बाप या झाता में है। परन्तु सभी बातें तो उसका पिता ही जानता था । इसलिए व्यवहार-कुशल पिता ने कहा : “त्ासेइ चौर-सावय विसर जल-जलणा-बंवरणु-भयाइ' ॥ 'चितिज्जंतो रकखस रण राय-भयाई भावेण ॥ अर्थात्‌ नवकार महामंत्र के स्मरण से चोर, सिह, सपे, पानी, अ्रग्ति, बंधन, राक्षस, संग्राम, हाजभय आदि सभी भय दूर हो जाते हैं। (पिता ने ऐसी,शिक्षा दी। श्रौर कहा बेटा कोई संकट ग्रावे तो जवाकर महामंत्र का स्मरण करना । तेरे सभी दःख दर हो जाएगे। ऐसा कह कर , पिता লন क्र साम्नन अपने लडके রগ सिर पर हाथ रख क्र ग्राशीर्वाद दिया और परलोक सिधार गए ।-पिता का पीछे का मरण-क्रिया ग्रादि का जो भी कार्य करना था, सब को अच्छा दिखाने के लिए सत्र व्यवहार लटके ने संभाल लिया । माता समो कि मेरा लड़का अरब ठीक हो जाएगा । परन्तु वह मव कुछ दुनियाँ को दियावे के; लिए ही फर रहा था। पिता के मरने के पश्चात्‌ उसने अपने पिनाक एकपरि तिया टा धन अपने मित्रो साय নুক্সা, शराब, अश्यादनि प्रादि में ~ इ (न्वी ता | নি নল নু শিত্যাহা इन गया | শক ५५१ ठ ट्या




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