हिन्दी साहित्य को कूर्मान्चल की देन | Hindi Sahitya Ko Kurmanchal Ki Den
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
448
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शुमादांसा
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7 =
कति का विशेष लाइला हिमाचल की गोद में बसा हुआ कूर्मांचल न जाने किम
अन्नातकाल से दुर्गम देवभूमि और साधना-भूमि के रूप में प्रसिद्ध रहा है। भगवती सरस्वती
की इस पर सतत कृपा रही है और आदि-शक्ति हैमवती दर्मा का यह उद्भूवस्थल न जाने
किस युग से देश का सजग प्रहरी रहा है, पर लक्ष्मी की कृपा-कोर से वंचित होगे के
कारण प्रचाराभाव से यहाँ की विद्वत्परम्परा से शेष जगत् कम ही परिचित रहा है।
महामहोपाध्याय षट्यास्त्ी पंडित नित्यानन्द पन्त, पं० केशवदत्त शास्त्री, पं० ताराद्त
पन्त, पं ° देवीदत्त जोशी आदि अनेक विद्वानों ने संस्कृत वाह भय की बहुमुखी श्रीवृद्धि में
जी सहयोग दिया है उससे कितने महानुभाव परिचित है। प्रस्तुत प्रन्थ द्वारा कूर्माचल के
इस मौत साधकों एवं साहित्य-सृष्टाओं को एक सूत्र में पिरोने का यहु प्रथम एवं
मौलिक प्रयारा इस दृष्टि से स्वेथा स्तुप्य है-्यद्यपि समय की गतिशीक्षता के कारण इस
ग्रग्थ से पुर्णता की अपेक्षा नही की जा सकती | ४
>प्रन्थारंभ में कर्मांचल की भौगोलिक रूपरेखा, ऐतिहासिक परिचय और साहित्यिक
परम्परा की सेकषिप्त किन्तु साराभित पूवैपीर्ठिका है । भगवान् विष्णू कै कूर्म स्प में
शवतरित होने के कारण प्रारम्भ में यहाँ के स्थात-विशेष को 'कूर्मांचच' कहते थे। यही'
अभिधान कझमशझः व्यापक होकर आज के अल्गीड़ा, पिछैरागढ़ और नेतीताल জিলা के
लिए व्यवहृत होते लगा । कुमा या क्षुमूँ कूर्माचल के अपभ्रष्ट रूप हैं। यह सिद्धाग्त
प्रमाण-पुष्द होते से निविवाद है। अतएवं 'कम्राऊ' (कमाने वाला), कुभकरण की खोपड़ी
अथव। कूम नामक राजा विशेष् से इस शब्द को व्यूत्पन्न करने का प्रयास उपहासास्पद है।
इन कह्पता-प्रसूत मतों को विशेष महत्त्व नहीं देना चाहिएं। ऐसिहासिक परम्परा में
भहिषापुरं-मदिनी दूंगा को नहीं भूलाया जा सकता । धुदर प्रायतिहासिक काल में जब देश
की शवित विच्छिन्त होते के कारण आर्याव्त असुरों द्वारा पद-दलित हो रहा था तब उन
बिखरी हुई शक्तियों के संघ की प्रतीक दुर्गा ने महिषासुर का भर्देन कर देश को पुन;
एकता के सूत्र में बाधा था और जब हिमालय के उत्तर से अपने सेनानी लण्ठ और मण्ड
के प्रधीन अपनी रक्तबीज की संतान-सी विशाल और दुधेष सेवा को लेकर शुम्भ और
निशुम्भ भारत पर चढ़ जाये थे तब भी इसी महाशकित ने उनका संहार कर हिमाचल की
अभेद्यता को पिद्ध किया था + बल्मोड़ा के उत्तर में शुस्भगढ़' आज भी उम्र त्विज्नरणीर ,
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