जैन रामायण -उत्तरार्द्ध | Jain Ramayan - Uttararddha

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Jain Ramayan - Uttararddha by दि॰ जैन ब्र॰ सुंदरलाल - Di॰ Jain Bra. Sundralal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क दोहा इस चरचा को सुनत हो बज्जर को सो मार । पड़ी राम के हृदय पर करने लगे विचार २ सुयस हमारा जगत में कमलों का सा बाग | सो सीता के निमित से जल कर बनता आग २ चीपाई इस्त सीता के कारण वनं स भासो क्ष उखाया धा) सागर को लंध कर पार गया रावण से युद्ध मचाया था £ करि फते उसे लाया इसको कुछ सुखसे काल बिताना था। सो उलटा पढ़ा आन करके ये भेद नहीं पहचाना था £ जो लोग कहें सो साँची है ना कहते बात बना करके ॥ रहो दृ्ट पुरुष के घर सीता क्‍यों राखी मेने ला करके ६३ सीता से भेरा प्रम अधिक कसे न्यारा कोनी जाव ॥ उप पर्तीत्रता गुणवन्तीमेना काडे दोप नजर श्रे ४ अथवा खिन के हिरदय वा कारण को जाने कंसा है ॥ जिनमें सत्र दोपोंका नायःः गनमंथ बस रहा हमेसा है ५ हैं सब दोपों को खानि यही ली का जन्म बताया ऊने कुल वाले पुरुषों को नोचा करके बंठाया जमे फोचइम फभा हुआ पशु बाहर नहि आखकता ससे सो के राग रुप में आका प्राणी फसना हे ७ 1৯ ৩15 35 325 1६]




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