प्रवचन प्रभा भाग - 1 | Pravachan Prabha Bhag - 1

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Pravachan Prabha Bhag - 1 by रजत मुनि - Rajat Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्ञान का अक्षय स्रोत ९ शास्त्र में आठ-कर्मों के नाम इस प्रकार बताए ह--ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र, अन्तराय । मात्मा का सबसे प्रधान गुण ज्ञान है। इस ज्ञान ग्रुण को--जानने की अनन्त श्क्ति को ज्ञानावरणीय कर्म ने ढक रखा है--आवरण कर रखा है, वह ज्ञान को प्रकट नही होने दे रहा है। जसे सुये का स्वभाव प्रकाशमान है, किन्तु जब वह वादलो से घिर जाता है--आच्छादित हो जाता है तो उसका प्रकाश फीफा पड जाता है ओर उसकी ज्योति मनन्‍्द पड़ जाती है। यदि जल-भरे काते वादलो की घनघोर घटा उसे आच्छादित कर लेती है, तो दिन मे भी विशेष अन्धकार आ जाता है। इसी प्रकार ज्ञानावरणीय कर्म के जाने से हमारा सम्यक ज्ञान ढक रहा है और उसका वास्तविक पूर्ण प्रकाश हमे नही प्राप्त हो रहा है। हमे अपने चारो ओर अज्ञान ही भज्ञान रूप अन्ध- कार दिखाई दे रहा है। मथवा जसे हम अपनी भख वन्द कर लेवें, या उन पर पट्टी बाघ लें, तो हमे कुछ भी दिखाई नही देता है और सव ओर अन्धेरा ही प्रतीत होता है। इसी प्रकार ज्ञानावरणीय कर्मके द्वारा सूयं फे समान प्रकाहमान और इस चराचर जगत का प्रकाशक हमारा ज्ञान गुण आच्छादित हो रहा है, ढक रहा है--इससे इस चराचर जगत को हाथ पर रखे आवले के समान जानने की शक्तिवाला आत्मा उसे नहीं जान रहा है । आवरण को हटाए पवंराज का यहु पहला दिन हमे स ज्ञानावरणीय फर्म को दूर करने फी प्रेरणा देता है। क्या प्रेरणा देता है ? यह प्रेरणा देता है कि हम यह विचार करें कि हमारे यह ज्ञानावरणीय कमं क्यो वधा ? इसलिए নঘা फि हमने ज्ञानी पुर्षों की आशातना की, ज्ञान की आशातना की, शान के उपकरणों की भाशातना की, ज्ञान के पढने वालो को अन्तराय दी और सम्यकन्नान को मिथ्यात्व के साचे में ढाला। इन पांच कारणों से हमारे ज्ञानावरणीय कम वधता है। अनादिकाल से ही यह जीव दस प्रकार के कार्यों को करता आ रहा है, अत तभी से यह इस कम




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